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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि मेरी बेटियाँ सुरक्षित है? आप बंगालके नौजवानोंको नहीं जानते हैं। आप नहीं जानते कि यहाँ किसी नौजवान लड़कीके लिए बिना किसी संरक्षकके घूमना-फिरना कितना कठिन है। कलकत्तेकी गलियोंमें घूमनेवाले विद्यार्थियोंकी वासनापूर्ण दृष्टिसे वे बच नहीं सकतीं।" क्या यह सब सच हो सकता है? मैं तो यही उम्मीद करता हूँ कि यह सच नहीं हो सकता। लेकिन इन लड़कियोंकी वह विधवा माता कोई अनपढ़ औरत नहीं है। मैं आपको बता दूं कि वह कांग्रेसकी एक बहुत बड़ी कार्यकर्जी है। उसने बिना जाने और अनुभव किये कुछ नहीं कहा था। उसकी बातें उसके कटु अनुभवोंपर आधारित थीं। उसने कहा था, "आप चाहें जिससे पूछकर देख लीजिए, बंगालके सभी मातापिता सामान्यतः मेरी बातकी ताईद करेंगे।"

अभी हाल में ही मैंने अखबारोंमें एक खबर पढ़ी कि एक लड़कीने —उसका नाम अभी भूल रहा हूँ—आत्महत्या कर ली। मैं आपसे पुण्यस्मरणीय स्नेहलता बहनकी बात नहीं कर रहा हूँ, मैं तो उस लड़कीकी बात कर रहा हूँ, जिसने अभी हालमें आत्महत्या कर ली है। ऐसा खयाल है कि उसने आत्महत्या इसलिए की कि उसका पिता उसके लिए कोई योग्य वर नहीं ढूंढ पाया। क्यों नहीं ढूंढ पाया? अखबारमें बताया गया है कि उस लड़कीके माता-पिता जिन नौजवानोंके पास गये, सभीने भारी-भारी रकमोंकी मांग की। क्या विवाह कोई पैसेसे तय की जानेवाली चीज है? क्या यह कोई सौदेबाजी है, अथवा यह कोई पवित्र प्रथा है? यह प्रेमका सौदा है या पैसेका? आखिर हमने अपने स्कूलों और कालेजोंमें क्या सीखा है? अगर यह बात ठीक हो, और मुझे तो लगता है कि ठीक है तो इसकी जिम्मेदारी बंगालके विद्यार्थियों के सिर है। अगर यह बात सही है तो इस बुराईको दूर करना आपमें से हरएकका कर्तव्य है। जबतक बंगालमें एक भी लड़कीकी आजादी खतरेमें है, जबतक एक भी लड़की इस कारणसे कि उसके माँ-बापके पास उसके लिए योग्य वर खरीदनेके लिए काफी पैसे नहीं है, आत्महत्या करना जरूरी समझती है तबतक हम स्वराज्यकी बात न करें, हम भारतकी आजादीकी बात न करें। मैं चाहता हूँ कि पहले हम बंगालके भालपर से कलंककी यह कालिमा मिटायें और बंगालके विद्यार्थी कासिम बाजारके महाराजाकी इस दानशीलताके योग्य बनकर दिखायें। विद्यार्थी लोग संसारके सामने,बंगाल के माता-पिताओं के सामने यह सिद्ध करके दिखायें कि उनके हाथोंमें बंगालकी एक-एक लड़कीकी इज्जत उतनी ही सुरक्षित है जितनी कि स्वयं उस लड़कीके माता-पिताके हाथों में है। और जबतक हम यह प्रारम्भिक पाठ नहीं सीख लेते, तबतक मुझे तो लगता है कि अबतक का हमारा जीवन व्यर्थ गया, बंगालके विद्यार्थियोंने अबतक अपना जीवन व्यर्थ गँवाया, और उन्हें उदार और आधुनिक शिक्षा देने में, शानदार इमारतोंमें उनकी रिहाइशकी व्यवस्था करने में जो इतना धन खर्च किया जा रहा है, वह श्रम और पैसा, दोनोंकी बर्बादी है। ईश्वर आपको मेरी इन बातोंका सार समझनेकी शक्ति और समझदारी दे। मैं जो-कुछ कह रहा हूँ, उसकी आलोचना न कीजिए, उसकी प्रशंसा भी मत कीजिए, बल्कि अपने मनसे पूछिए कि मुझे जो जानकारी दी गई है वह कहाँतक सही हो सकती है। अगर पूरी बात नहीं