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भाषण : कृष्णनाथ कालेज, बहरामपुर

बताई गई हो तो जितनी बताई गई है, उतनी भी बंगालके विद्यार्थियोंके लिए भारी लज्जाका विषय है। अगर यह बात कुछ सौ विद्यार्थियोंपर भी लागू होती तो मैं कहूँगा कि इसे आप एक खतरनाक चीज समझिए। यह बहुत ही घिनौनी चीज है, ऐसा नासूर है जो समाजको भीतरसे खोखला बनाता जा रहा है, और अगर शुरूमें ही इस बुराईको दबा नहीं दिया जाता तो यह सारे बंगालमें फैल जायेगी। इसलिए मैंने आपसे जो बातें कही है, उनकी आलोचना किये बिना और उनमें निहित सच्चाईकी बहुत बारीकीसे नाप-जोख किये बिना उनके सारको ग्रहण कीजिए, मैंने जो भी कहा है उसका आपमें से हरएक, जो अच्छेसे-अच्छा उपयोग कर सकता है, सो करे। प्राचीन ऋषियोंका कहना है कि विद्यार्थीकी शिक्षा साहित्यसे शुरू नहीं होती। क्या आपको मालूम है कि वैदिक कालमें विद्यार्थी जब गुरुके पास जाता था तो उससे क्या करनेको कहा जाता था? निश्चय ही पढ़ने-लिखनेकी परीक्षा पास करनेके लिए नहीं। उसे गुरुके पास अपने हाथमें समिध-खण्ड —हवनकी कुछ लकड़ियाँ—लेकर जाना पड़ता था। यह किस बातका संकेत था? यह हृदयकी शुद्धता और शचिताका द्योतक था। यह विद्यार्थीके इस संकल्पका द्योतक था कि वह अपने गुरुके लिए श्रम करेगा, ताकि उससे वह सब-कुछ मिल सके, जिसका वह पात्र हो। वह 'क्यों' और 'किसलिए' नहीं पूछता था; उससे तो यह अपेक्षा थी कि गुरु जो कुछ दे उसे बह कृतज्ञ भावसे स्वीकार करे। अगर आप शेक्सपियर और मिल्टनकी कृतियोंके सुन्दर अंशोंको कंठाग्न करके खुश होते हैं, तो मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन इससे पहले आपको वह चीज सीखनी चाहिए, जिसमें अधिक सार है। आपको अपनी इमारत सुदृढ़ नींवपर खड़ी करनी चाहिये, इसलिए आपको पूर्ण सत्यको आधार बनाकर बढ़ना चाहिए, आपको पूर्ण प्रेम और अहिंसाकी नींवपर अपना भवन खड़ा करना चाहिए। जीवनके इन आधारभूत सिद्धान्तोंका पालन करना हर विद्यार्थीका कर्तव्य है। आप जानते हैं कि महाभारतकारने हमें सत्यके महत्त्वके विषयमें क्या शिक्षा दी है। वे कहते हैं, "आप एक पलड़ेपर सत्यको रखिए और एकपर अपने यज्ञोंको। फिर भी आप देखेंगे कि सत्यका पलड़ा भारी है।" महाभारतकारका कहना है कि संसारमें सत्यसे बढ़कर कुछ नहीं है, और उनका कहना ठीक ही है। अपने सीमित अनुभवोंके दौरान आप चाहे असत्यको जितना भी सफल होते देखिए, आप इतिहासमें भी भले ही यह देखें कि जाल-फरेबके बलपर किस प्रकार राजाओं और सरदारोंने सता और राज्य हासिल किये है, किन्तु याद रखिए कि ये चीजें क्षणभंगुर हैं। एक राष्ट्रके जीवनमें, संसारके जीवनमें कुछ हजार वर्ष क्या महत्त्व रखते हैं? विद्यार्थियोंके रूपमें आपको इन चीजोंमें माथापच्ची नहीं करनी है। आप सत्य और अहिंसाके पालनका संकल्प कीजिए। आप इन प्रकाश-स्तम्भोंको ध्यानमें रखेंगे तो आप कभी गलत दिशामें नहीं भटकेंगे। और फिर आप साहित्य-विज्ञानका जितना अध्ययन करना चाहें, शौकसे करें। लेकिन अगर आपकी नींव मजबूत नहीं है, तो कुछ समयतक ये इमारतें देखने में चाहे जितनी अच्छी लगे, याद यखिए कि वे ताशके पत्तोंके घर है, जो हवाके एक हलकेसे झोंकेसे गिर जायेंगे।