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२१. भाषण : इंडियन एसोसिएशन, जमशेदपुरमें[१]

[८ अगस्त, १९२५]

इस्पातके इस विशाल कारखाने में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। जब मैं १९१७ में चम्पारनके खेतिहरोंका काम करने में लगा हुआ था, तभीसे यहाँ आनेकी सोचता रहा हूँ। उसी समय मुझसे सर एडवर्ड गेटने कहा था कि आपको इस कारखानेको देखे बिना बिहारसे वापस नहीं जाना चाहिए। लेकिन मनुष्य तो इच्छा ही कर सकता है, उसका पूरा होना-न-होना ईश्वरकी मर्जीपर है, और तब ईश्वरको यह मंजूर नहीं था कि मैं इस कारखानेको देख सकूँ। मैने कई बार इसे देखनेकी कोशिश की, लेकिन देख नहीं सका।[२]

जैसा कि आप जानते हैं, मैं खुद एक मजदूर हूँ। मैं अपने-आपको भंगी, बुनकर, कतैया, किसान आदि कहनेमें गौरवका अनुभव करता हूँ, और अगर इनमें से कुछ काम मुझे ठीक-ठीक नहीं आते तो उसके लिए मुझे लज्जाका अनुभव नहीं होता। मजदूरोके साथ उनकी पक्तिम खड़े होनम मुझे बड़ा सुख मिलता है, क्योंकि श्रमके बिना हम कुछ नहीं कर सकते। एक लेटिन कहावत है, जिसका मतलब है, "श्रम करना प्रभुकी आराधना करना है," और यूरोपके एक बहुत अच्छे लेखकने कहा है कि श्रम किये बिना किसी भी व्यक्तिको खानेका अधिकार नहीं है, और श्रमसे उसका तात्पर्य मानसिक श्रम नहीं, बल्कि शारीरिक श्रम है। सम्पूर्ण हिन्दूधर्म ऐसे ही विचारसे ओतप्रोत है। 'भगवद्गीता' के एक श्लोकका शब्दार्थ है, "जो श्रम किये बिना खाता है, वह पाप खाता है, वह सचमुच चोर है।" इसलिए मुझे इस बातपर गर्व है कि मैं सारी दुनियाके श्रमिकोंके साथ अपनेको एकात्म कर सकता हूँ।

मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं भारतीय उद्यमसे खड़े किये गये इस उद्योगको—जो भारतका सबसे बड़ा नहीं तो सबसे बड़े उद्योगोंमें से एक तो है ही—देखें और यहाँ श्रमिकोंको जिन परिस्थितियोंमें काम करना होता है उनका अध्ययन करूँ। लेकिन मेरी कोई भी प्रवृत्ति एकपक्षीय नहीं है, और चूंकि सत्य और अहिंसा ही मेरे धर्मका आदि और अन्त है, इसलिए जहाँ मैं श्रमिकोंके साथ तादात्म्यका अनुभव करता हूँ वहाँ पूंजीपतियोंके प्रति भी मैत्रीका भाव रखता हूँ और इसमें कोई असंगति नहीं देखता। सच मानिए कि अपने ३५ वर्षोंके जनसेवाके जीवनमें यद्यपि मुझे ऐसा रुख अख्तियार करना पड़ा है, जिससे मैं ऊपरसे देखनेमें पूंजीपतियोंके विरुद्ध खड़ा जान पड़ा हूँ, किन्तु अन्तमें पूंजीपतियोंने मुझे अपना सच्चा मित्र माना है। और मैं

  1. शामको गांधीजीको एक प्रति भोज दिया गया और वहाँ उन्होंने भारतीयों और यूरोपीयोंकी सभामें भाषण दिया।
  2. यह अनुच्छेद १४–८–१९२५ की अमृतबजार पत्रिका में छपी रिपोर्ट से लिया गया है।

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