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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत नम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि यहाँ भी मैं पूंजीपतियोंके, टाटा-परिवारके, मित्रकी हैसियतसे ही आया है। टाटा-परिवारके साथ मेरा सम्बन्ध कैसे शरू हआ, यहाँ अगर मैं इसके बारेमें आपको एक छोटा-सा वृत्तान्त न सुनाऊँ तो यह मे कृतघ्नता ही होगी। जब मैं दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके साथ वहाँ भारतीयोंके आत्मसम्मानकी रक्षा करने और उचित दर्जा हासिल करनेके लिए संघर्ष कर रहा था तब जो सज्जन सबसे पहले हमारी सहायताके लिए आगे आये वे थे स्वर्गीय सर रतनजी टाटा। उन्होंने मुझे बहुत उदात्त भावोंसे भरा एक पत्र लिखा और राजसी उदारताके साथ २५,००० रुपयेका एक चेक भेजते हुए पत्रमें यह वादा किया कि अगर जरूरत हुई तो और भी भेजूँगा। तबसे टाटा-परिवारके साथ अपने सम्बन्धोंकी स्मृति मेरे मनमें बिलकुल ताजा बनी हुई है, और आप सहज ही समझ सकते है कि आज आपके बीच आकर मुझे कितनी खुशी हो रही है। कल जब मुझे आप लोगोंसे विदा लेनी होगी तब मैं भारी मनसे ही विदा लूँगा, क्योंकि मुझे बहुत सारी चीजें देखे बिना ही यहाँसे रवाना हो जाना पड़ेगा। अगर मैं ऐसा कहें कि मैंने दो ही दिनमें सचमुच सब-कुछ भली-भाँति देख लिया है तो यह मेरी धृष्टता ही होगी। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि इस महान उद्योगका सांगोपांग अध्ययन कर पाना कितना भारी काम है।

इस महान भारतीय पेढ़ीको योग्य समद्धि प्राप्त हो और यह महान उद्यम हर तरहसे सफल हो, यही मेरी कामना है। क्या मैं यह आशा भी करूँ कि इस महान परिवार और इसकी देखरेखमें काम करनेवाले मजदूरोंके आपसी सम्बन्ध अधिकसेअधिक सौहार्दपूर्ण होंगे? अहमदाबादमें पूंजीपतियों और मजदूरोंसे मेरा सम्बन्ध बराबर आता रहा है और मैंने बराबर कहा है कि पूँजीपति और मजदूर एक दूसरेके पूरक, एक दूसरेके सहायक बनें, यही मेरा आदर्श है। उन्हें एक बड़े परिवारकी तरह एकता और मेलजोलसे रहना चाहिए—पूंजीपति लोग सिर्फ मजदूरोंके भौतिक हितसाधनका ही खयाल न रखें, बल्कि उनके नैतिक उत्थानकी भी फिक्र करें, क्योंकि पूंजीपति लोग अपने अधीन काम करनेवाले मजदूरोंके हितोंके संरक्षक है।

मुझको बताया गया है कि यद्यपि यहाँ बहुत-से यूरोपीय और भारतीय रहते हैं, फिर भी उनके पारस्परिक सम्बन्ध बहुत मीठे हैं। मुझे उम्मीद है कि यह बात शब्दशः सच है। इस महान् उद्यमसे सम्बद्ध होना आप दोनोंके लिए सौभाग्यकी बात है, और आप चाहें तो भारतके सामने पारस्परिक मेलजोल और सद्भावनाका वस्तु-पाठ प्रस्तुत कर सकते हैं। आशा है, आप परस्पर एक-दूसरेसे अच्छसे-अच्छे सम्बन्ध रखेंगे—और वह सिर्फ इस विशाल कारखानोंके भीतर ही नहीं, बल्कि इसके बाहर भी। मुझे उम्मीद है कि इस कारखानेसे बाहर भी आप एक-दूसरेसे वैसा ही सौहार्दपूर्ण व्यवहार करेंगे और आप दोनों इस बातको समझेंगे कि आप यहाँ आपसमें भाई-भाई और बहन-बहनकी तरह रहने और काम करनेके लिए आये हैं—कोई भी दूसरेको छोटा अथवा अपनेको बड़ा नहीं मानेगा। अगर आपने इतना कर लिया तो इसका मतलब यह होगा, आपने छोटे पैमानेपर स्वराज्य प्राप्त कर लिया।