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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिस्सेदार, मेरी शान्तिकी देवी, हिन्दुस्तानके दुखियोंकी सहारा मेरी तकली तो सदैव मेरे पास रहती ही है। मेरी असावधानीसे कहीं किसी दिन वह छूट न जाये, इस भयसे अब मैं उसे चश्मेके साथ एक ही खोलमें रखता हूँ या अगर ठीक-ठीक कहूँ तो मैं चश्मेको ही तकलीवाले खोलमें रखता हूँ। चश्मा तो मैं भूल नहीं सकता, इसलिए तकली भी नहीं भूलता। मैंने तो तकली निकालकर कातना शुरू कर दिया। भाषण सरस हो या नहीं, इसकी मुझे अब चिन्ता नहीं रही, मैंने मौलाना रसूलकी प्रिय वस्तु स्वदेशीका पदार्थपाठ देना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वक्ताओंके भाषण समाप्त होते गये, मेरी पूनियाँ भी खुटने लगीं। सभाको दुहरा लाभ हुआ—एक तो वक्ताओंके मुँहके वचन कानोंसे सुननेका लाभ और दूसरा मेरे हाथोंके वचन आँखोंसे देखनेका लाभ।

सभाकी समाप्तिके समय भी मुझे कहनेको क्या रहा था? मेरा सच्चा भाषण तो वह क्रियात्मक भाषण ही था। इसलिए अपने उस क्रियात्मक भाषणका मर्म समझानेके तौरपर मैंने चरखेपर भाषण दिया। मौलाना रसूलको स्वदेशी प्रिय तो थी पर स्वदेशीके सच्चे अर्थको उन्होंने पूरा-पूरा नहीं समझा था। बाजे अथवा घड़ीके सब पुर्जे विदेशसे मँगाकर उन्हें यहाँ सिर्फ जोड़ देनेको ही हम अभीतक स्वदेशी बाजा अथवा घड़ी समझते थे। अब तो हम यह जानते है कि शक्य और व्यापक स्वदेशीका अर्थ है हाथसे कते सूतकी हाथसे बुनी खादी। यही मेरे हाथों द्वारा दिये भाषणका भाष्य है। सभी सभापतियोंको तो यह दुहरा लाभ नहीं मिल सकता, लेकिन जिनके मनमें तकलीके प्रति तिरस्कारकी भावना न हो, उन्हें मेरा सुझाव है कि यदि वे अपनी गद्दी अथवा कुसीपर बैठे-बैठे काता करें तो उनका समय भी शान्तिसे बीत जायेगा और ही उन्हें हिन्दुस्तानकी सम्पदामें थोड़ी-बहुत अभिवद्धि करनेका श्रेय भी मिलेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ९–८–१९२५
 

२५. टिप्पणियाँ
बासन्ती देवीका चरखा

श्रीमती बासन्ती देवीके दर्शनका लाभ में बराबर लेता हूँ। परन्तु अभीतक मैं उनको रोज घूमने निकलने के लिए राजी नहीं कर पाया हूँ। उनके साहसका कोई अन्त नहीं है। लेकिन मनकी व्याकुलता तो नहीं जा सकती। वे किसी भी काममें रस नहीं ले पातीं। वे जब तब बहुत रात बीते श्मशान भूमि जाया करती है। लेकिन इससे दुःखको भुलाने में तो कोई मदद नहीं मिलती, उलटे वह बढ़ता ही है। उनका मन एक ही चीजमें रमता है। वे दो घंटेतक चरखा चलाती है और यह काम उन्हें अच्छा लगता है। यूरोपके प्रख्यात कवि गेटेने अपने प्रसिद्ध नाटक 'फॉस्ट' की नायिका के हाथमें चरखा देकर मधुरतम गीत गवाया है। अपने एक सार्वजनिक भाषणमें सर प्रभाशंकर पट्टणीने भी उनपर चरखेका जो असर हुआ, उसका हाल सुनाया था।