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२९. भाषण : यंग मैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशनमें[१]

[कलकत्ता
१२ अगस्त, १९२५]

अपने भाषणमें महात्माजीने नौजवान ईसाइयोंसे कहा कि आप लोग स्वर्गीय माइकेल मधुसूदन दत्त, कालीचरण बनर्जी और सुशील कुमार रुद्रके शानदार उदाहरणोंका अनुकरण करें और अपनी मातृभाषा तथा राष्ट्रीय तौर-तरीकोंके प्रति उनकी तरह अपने मन में गहरा अनुराग पैदा करें। जिस धर्मका आप लोगोंने परित्याग कर दिया है उसके प्रति और फिर जिस धर्मको आपने अपनाया है उसके प्रति भी अपने कर्तव्यका पालन करने में आप इनके उदाहरणोंका अनुकरण करें। उन्होंने उनसे अपीलकी कि आप लोग अपने-आपको शेष समाजसे बिलकुल अलग न कर लें, बल्कि करोड़ों लोगोंकी इच्छाओं और आकांक्षाओंको समझनेकी कोशिश करें, जनसाधारण तथा मानवजातिकी कठिन सामाजिक समस्याओंको समझने और उनको हल करनेका प्रयास करें। आप लोग अपने-आपको गांवोंके लिए तैयार करें। गाँवोंकी आवश्यकताओं को, उनकी बुनियादी आवश्यकताओंको समझिए और उन्हें पूरा कीजिए।[२]

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, १३–८–१९२५
 

३०. बंग-केसरी

सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके देहावसानसे भारतके राजनीतिक जीवनसे एक ऐसा व्यक्ति उठ गया, जिसने इसपर अपने व्यक्तित्वकी गहरी छाप डाली है। यह सही है कि इधर हाल के वर्षों में जब हमारे बीच नये आदर्शों और नई आशाओंकी लहर उठी तब वे पर्देके पीछे चले गये; लेकिन इससे क्या अन्तर पड़ता है? हमारा वर्तमान आखिर हमारे अतीतका ही फल है। आज हमारे सामने जो आदर्श हैं, हमारी जो आकांक्षाएँ है, वे उन लोगोंके अमूल्य कार्यके बिना असम्भव होतीं, जिन्होंने सबसे आगे बढ़कर हमारे

 
  1. यह भाषण गांधीजीने 'भारतीय ईसाई नवयुवकोंके कर्तव्य' पर वाई॰ एम॰ सी॰ ए॰ की चौरंगी स्थित शाखा में दिया था। सभा रातको साढ़े नौ बजे हुई थी और इसमें उपस्थित लोगोंमें मुख्य रूपसे यूरोपीय थे।
  2. गांधीजी द्वारा भाषण समाप्त करने पर उनसे कुछ प्रश्न पूछें गये। एक प्रश्न यह पूछा गया कि युवा भारतीयों का यूरोपीयोंके प्रति क्या कर्तव्य है? उन्होंने कहा कि वे यूरोपीयों से दोस्ती करें, मेल-जोल बढ़ायें, फिर उनसे पूछा गया कि यह किस प्रकार करें तो उन्होंने परिहासके तौर पर कहा "मुक्केबाजी प्रतियोगिता का आयोजन करके!"।