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३१. टिप्पणियाँ
खादी-कार्यकर्ताओंका लेखा

अखिल भारतीय खादी मण्डलके मंत्रीने सभी प्रान्तोंके नाम एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें उनसे तमाम खादी-कार्यकर्ताओंकी योग्यता, कार्य और पारिश्रमिक आदिके विवरणके साथ सूची भेजनेको कहा गया था। यह विवरण अभीतक केवल बिहार, संयक्तप्रान्त, उत्कल, असम, महाराष्ट्र, बंगाल, केरल और कर्नाटक, इन सात प्रान्तोंसे ही आया है। जिन प्रान्तोंमें खादी-कार्य किसी हदतक अच्छे पैमानेपर चल रहा है, उन्होंने अभीतक अपना विवरण नहीं भेजा है। और जिन्होंने भेजा है उनके तथ्य और आँकड़े अधूरे हैं। उदाहरणके लिए, बिहारने ३२ वैतनिक और २ अवैतनिक कार्यकर्ताकओंके नाम दिये हैं, पर वहाँके प्रमख कार्यकर्ताओंमें से भी कुछके नाम छट गये हैं। कई केन्द्रों के नाम दर्ज है; पर मलखाचकका नाम ही नहीं है। बंगालसे केवल अभय आश्रमने अपनी सूची भेजी है; पर उसमें भी डा॰ सुरेश बनर्जी, श्री हरिपद चटर्जी और अन्नदा बाबूके नाम अकारण ही छोड़ दिये गये हैं। कर्नाटककी सूचीमें भी श्री गंगाधरराव देशपाण्डेका नाम नहीं है, जो बेलगाँव कांग्रेसके[१] बादसे अपना सारा समय खादीके काममें ही लगाते रहे हैं। केवल महाराष्ट्रकी सूची काफी हदतक पूरी और दुरुस्त मालूम होती है। गुजरात, आन्ध्र, बंगाल और तमिलनाड की सूचियाँ विशेष रूपसे दिलचस्प और शिक्षाप्रद होतीं, किन्तु इन प्रान्तोंने बिलकुल चुप्पी ही साध रखी है।

किन्तु फिर भी जो-कुछ अधूरे और संक्षिप्त विवरण मिले हैं, वे भी अपने ढंगसे काफी दिलचस्प है। वैतनिक कार्यकर्ताओंकी संख्या १४८ है, जिनको कुल ३,४६९ रुपये माहवार दिये जाते हैं, अर्थात् औसतन् २३ रु० प्रति कार्यकर्ता। अवैतनिक कार्यकर्ताओंकी संख्या ५८ है। यद्यपि इनमें से कुछ लोगोंकी शैक्षणिक योग्यता नहीं बताई गई है, फिर भी सूचियोंसे पता चलता है कि इनमें से १६ स्नातक हैं, ३ वकील हैं और बहुत-से कार्यकर्ता स्नातक कक्षाओंतक पढ़े हुए हैं। अधिकसे-अधिक वेतन प्रतिमास ६५ रुपये और कमसे-कम २ रु॰ है। प्रायः सब कार्यकर्ता पूरे समय काम करते हैं। अवैतनिक लोगोंमें पूरे समय काम करनेवालोंमें तीन स्त्रियाँ भी हैं। कुल मिलाकर १२८ खादी केन्द्रोंका उल्लेख हुआ है।

मेहनत नहीं तो खाना भी नहीं[२]

कुछ दिन पहले मुझे कलकत्तेके एक शानदार महलमें ले जाया गया था। उसे 'मारबल पैलेस' कहते हैं। उसमें सजावटके लिए बहुत-से चित्र लगे हैं, जिनमें से

 
  1. १९२४ का अधिवेशन।
  2. अधिक जानकारी के लिए देखिए, "नये आचार", २–८–१९२५ भी।