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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही हिन्दूधर्मका कल्याण होगा, और अगर उनकी कोई ऐसी आकांक्षाएँ है तो किसी भी अन्य धर्मकी तरह यह धर्म भी उन महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियोंके हाथमें आकर नाशको प्राप्त होगा। लेकिन, हिन्दूधर्ममें जो समय-समयपर अपने-आपको अपने तमाम दोषोंसे मुक्त कर लेनेकी क्षमता है, उसमें मेरा दृढ़ विश्वास है। मैं नहीं समझता कि उसकी यह क्षमता अब समाप्त हो गई है।

जापानकी सलाह

पिछले महीने एक दिन दो जापानी भाई मुझसे मिलने आये थे। उनसे मेरी बड़ी अच्छी बातचीत हुई और जाते समय वे एक कागज छोड़ गये जिसमें लिखा है :[१]

मैंने इसमें जान-बूझकर कोई संशोधन नहीं किया है, क्योंकि तब इसकी विलक्षणता[२] चली जाती। क्या ही अच्छा होता, अगर मैंने यह कागज इन मित्रोंसे मिलनेसे पहले पढ़ लिया होता। तब मैंने उनसे कहा होता कि मैंने इस सत्यका दर्शन कर लिया है कि ईश्वरने हमें दो हाथ दिये हैं और इसी कारण मेरे मनमें यह खयाल आया कि मैं इस देशके करोड़ों निवासियोंसे कहूँ कि आप एक मिनट भी बेकार न जाने दीजिए, बल्कि अपने हाथोंका यथासम्भव अच्छेसे-अच्छा उपयोग कीजिए ताकि अपने अवकाशके समयमें उनके ही उपयोगसे आप सारे भारतके लायक कपड़े बना सकें। मैंने अपने आगन्तुक मित्रोंसे यह भी कहा होता कि वे हमें अपना लक्ष्य सिद्ध करने में सहायता दें और जापानको समझायें कि वह हमपर ख्वामख्वाह अपना कपड़ा न लादे बल्कि हमारे साथ केवल ऐसा व्यापार करे जिससे हम दोनोंका लाभ हो। अन्तमें, मैंने उनसे यह भी कहा होता कि रेल मार्गों, जहाजों और विविध यन्त्रोंसे मेरा कोई विरोध नहीं है, मेरा विरोध तो इस समय संसारके अनेक राष्ट्रोंका शोषण करने अथवा उनको बरबाद करनेके लिए इनका जो दुरुपयोग किया जाता है, उससे है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३–८–१९२५
 
  1. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें जापानपर भारतके सांस्कृतिक प्रभावका उल्लेख करते हुए भारतीयोंके प्रति जापानियों की कृतज्ञता व्यक्त की गई थी और गांधीजी की ओर संकेत करके कहा गया था कि "वर्तमान युगमें भी. . .यहाँ एक महानतम व्यक्ति का आविर्भाव हुआ है, जो पूरी तरह से न्याय और सत्य का पक्षधर हैं।" इसके बाद लिखनेवाले ने अपने कुछ विचार बताये थे। उसने कहा था, ईश्वरने मनुष्यको स्वर्ग प्रदान कर रखा है, लेकिन यह चीज उसे सीधे हाथ न देकर दो हाथों के रूप में दि है, जिसके सहारे वह जो चाहे कर सकता है जो चाहे बना सकता है। उदाहरण के लिए उसे तरह-तरहके सुन्दर और सभी जलवायुके लिए उपयुक्त कपड़े बनाने चाहिए। किन्तु, साथ ही लेखकने रेलगाड़ी, जहाज आदि का निर्माण भी मनुष्य का कर्तव्य बताया था। इसमें यत्र यत्र भाषा और व्याकरणकी अशुद्धियाँ भी थीं।
  2. गांधीजी का तात्पर्य शायद पत्रकी अनगढ़ भाषा और शैलीसे है।