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मुद्रा और कपड़ा मिल

मैनचेस्टरके व्यापारियोंको इतना उदार और नेक बननेकी दिशामें प्रेरित कर सकता है कि वे मुद्रा-सम्बन्धी सुविधाओं तथा अन्य सुविधाओंको, जो वे अपनी बनाई सरकारसे प्राप्त कर सकते हैं, छोड़ दें? क्या कोई भारतीय व्यापारी ऐसी ही परिस्थितियोंमें मैनचेस्टरके व्यापारीसे कुछ भिन्न आचरण करेगा? इसलिए, परिस्थिति-संगत और प्रभावकारी एकमात्र जो आन्दोलन है वह है कोई ऐसी शक्ति उत्पन्न करना जो इस पवित्र भूमिमें इंग्लैंड तथा दूसरे देशोंके कपड़ोंकी भरमारको सफल ढंगसे रोक सके। पत्र-लेखक सज्जन निश्चय ही 'यंग इंडिया' को ध्यानसे नहीं पढ़ते, अन्यथा उन्हें पता होता कि मैं अपने देशके मिल-कपड़ा उद्योगके प्रति उदासीन नहीं हूँ। उचित प्रसंग आनेपर मैं यह कहनेसे कभी नहीं चूका हूँ कि मैं इस उद्योगके लिए जितना भी संरक्षण सुलभ हो सके, सुलभ कराना चाहूँगा, और अगर मेरा बस चले तो तमाम विदेशी कपड़ोंपर निषेधक तटकर लगा दूँ। लेकिन, इस सम्बन्धमें मेरे कर्तव्यकी इति यहीं हो जाती है। मिल-कपड़ा उद्योगको मुझसे और किसी सहायताकी कोई जरूरत भी नहीं है। उसके पास पूंजी है, उसके उत्पादनको भारतके कोने-कोने में ले जानेवाले एजेंट है। उसमें अपने हितोंकी रक्षा आप ही करनेकी पूरी सामर्थ्य है। दुर्भाग्यकी बात यह है कि उसमें साहसकी और जोखिम उठानेकी शक्ति नहीं है, और उसका दृष्टिकोण भी राष्ट्रीय नहीं है। उसे बराबर अपने कुछ साझेदारोंके लाभकी ही चिन्ता लगी रहती है। वह अपना माल खरीदनेवाले जनसाधारणकी कोई चिन्ता नहीं करता। खादीकी उस उद्योगसे शत्रुता नहीं है। यह तो उसके दुध-मुंहे छोटे भाईके समान है, जिसे उसकी स्नेह-भरी शुश्रुषाकी आवश्यकता है—उस समस्त संरक्षणकी जरूरत है जो एक वात्सल्यमयी धाय उसे दे सकती है। इसलिए खादी उद्योग इस बातका अधिकारी है कि मैं अपना सारा ध्यान इसीकी ओर लगाऊँ। साथ ही मैं इस बातकी भी कोशिश करता हूँ कि दूसरे लोग भी इसका खयाल करें। जब यह प्रौढ़ताको प्राप्त हो जायेगा तब बड़े भाई—अर्थात् मिल-कपड़ा उद्योग—के विरोधी दावोंपर विचार करनेका समय आयेगा, लेकिन उससे पहले नहीं। स्थितिपर तनिक सी स्पष्टतासे विचार करनेसे ही यह बात समझमें आ जायगी कि खादीको अपने स्थानपर पुनः प्रतिष्ठित करनेके प्रयासमें शायद अगली एक पीढ़ीतक देशी मिलोंके कपड़ा-उद्योगको भी अनिवार्य रूपसे संरक्षण मिलेगा। लेकिन, अगर हम अज्ञानवश खादीपर अपना ध्यान केन्द्रित करने में चूक जायेंगे, तो न केवल खादीका नाश हो जायेगा, बल्कि भारतके मिल-कपड़ा उद्योगका भी वही हश्र होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३–८–१९२५