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३४. पत्र : मदाम आँत्वानेत मिरबेलको

१३ अगस्त, १९२५

आपका अत्यन्त हृदयस्पर्शी पत्र[१] मिला। जिस बातको आपका मन इतनी तीव्रतासे अनुभव करता है मैं आपको उससे विरत करनेकी कोशिश नहीं करूँगा और अगर आप आना ही चाहें तो खुशी-खुशी आ जाइये। सिर्फ इतना याद रखिये कि जिस रक्त-मांससे आप और दूसरे सभी मानव बने हुए हैं, आप देखेंगी कि मैं भी उसीसे बना हुआ हूँ। इन नश्वर शरीरके भीतर जो अनश्वर आत्मा है, वह तो हजारों मील दूरसे भी आपसमें मिल सकती है और बातचीत कर सकती है। फिर भी मैं यह बात अस्वीकार नहीं करना चाहता कि कभी-कभी शारीरिक सान्निध्य भी लाभदायक होता है और अगर आपको शरीरतः मेरे निकट रहनेसे कोई लाभ हुआ तो वह इस कारण नहीं होगा कि मुझमें कोई मानवेत्तर शक्ति है, बल्कि इसलिए होगा कि आपमें ज्वलन्त आस्थाका बल है। मैं तो सिर्फ सत्यका अन्वेषक हूँ—निःसन्देह मानवीय पूर्णताको प्राप्त करनेके लिए प्रयत्नशील हूँ और निरन्तर प्रयास करते रहनेसे हममें से हरएक व्यक्ति इस पूर्णताको प्राप्त कर सकता है। अगर आप आनेका निर्णय करें और मुझे यह मालूम हो जाये कि आप किस जहाजसे आ रही है तो आपकी अगवानी करने के लिए कोई-न-कोई आपको बम्बई बन्दरगाहपर अवश्य मिल जायेगा और वह आपको साबरमतीकी ट्रेनतक पहुँचा आयेगा। मेरा दाहिना हाथ काम नहीं करता, इसलिए यह पत्र बोलकर लिखा रहा हूँ और इसपर बायें हाथसे हस्ताक्षर करके भेज रहा हूँ।[२]

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी से
महादेवभाईकी हस्तलिखित डायरी से।
सौजन्य : नारायण देसाई
 
  1. मदाम आँत्वानेत मिरबेलने अपने पत्रमें इस बात का उल्लेख करनेके बाद कि उन्होंने सन् १९२४ में गांधीजी के लेखोंका एक संग्रह पढ़ा था, लिखा था कि उसमें उन्हें अपनी आन्तरिक भावनाओं और विचारोंकी प्रतिध्वनि मिली और यह कि वे तभीसे गांधीजी को अपना गुरु बनाने की व्याकुलताका अनुभव करती रही है।
  2. मिरबेलने इसके उत्तरमें अपने ९ सितम्बरके पत्रमें लिखा था कि उन्हें गांधीजीका पत्र पाकर अवर्णनीय आनन्द प्राप्त हुआ। फिर २९ सितम्बरको उन्होंने गांधीजीको सूचित किया था कि वे १ अक्तुबरको चलकर २३ अक्तूबरको बम्बई पहुँचेंगी।