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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/११२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परम्पराओंकी सच्ची जानकारी अपने साथ लेकर आये हैं और वे जो कुछ भी करेंगे वह विवेक- पूर्ण, शान्त, विनम्र और देशभक्तिपूर्ण होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-९-१९०५

९३. ट्रान्सवालमें अनुमतिपत्र सम्बन्धी विनियम

ब्रिटिश भारतीय संघका कड़ा विरोधपत्र

अभी हालमें अनुमतिपत्र कार्यालयकी तरफसे कानून प्रकाशित हुआ है कि जिन लोगोंको अनुमतिपत्र चाहिए वे दो यूरोपीय गवाहोंके नाम पेश करें। उन्हें तभी अनुमतिपत्र मिल सकेगा। यह कानून अत्याचारपूर्ण है। इसके विरोधमें ब्रिटिश भारतीय संघने बहुत कड़ा पत्र लिखा है। उसमें कहा गया है कि यूरोपीय भारतीयोंको उनके नामसे पहचान सकते हों, ऐसे बहुत ही कम उदाहरण हैं। ऐसा नियम बनानेका अर्थ यह माना जायेगा कि सरकार अब किसी भी भारतीयको ट्रान्सवालमें आने देना नहीं चाहती। फिर इस नियमसे झूठको प्रोत्साहन मिलेगा। क्योंकि बहुत-से झूठे गोरे निकल आयेंगे और वे कुछ रकम लेकर शपथ लेनेमें जरा भी संकोच न करेंगे। अबतक ट्रान्सवालमें केवल १२,००० भारतीय दाखिल हुए हैं। युद्धसे पहले करीब १५,००० थे। अतः यह माननेका कारण है कि अब भी ३,००० पुराने भारतीयोंका लौटना बाकी है। वे सब बहुत कष्ट उठा रहे हैं और उनको अविलम्ब प्रवेशकी अनुमति देना सरकारका कर्तव्य है। अनुमतिपत्र-सचिवने यह पत्र परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरको भेजा है। वे यह जानना चाहते है कि युद्धसे पहले १५,००० भारतीय थे, यह किस आधारपर कहा गया है। इसका जो उत्तर संघने दिया है उसमें निम्न सबूत पेश किये गये हैं :

(१) अध्यक्ष श्री अब्दुल गनीका निजी अनुभव ।

(२) अन्य पुराने भारतीय निवासियोंकी निजी जानकारी।

(३) युद्धसे पहले ब्रिटिश एजेंटकी दी हुई रिपोर्ट, जिसमें भारतीयोंकी आबादी प्रायः १५,००० बताई गई है।

(४) सन् १८९५ में भारतीयोंकी आबादी ५,००० बताई गई थी। सन् १८९५ से १८९९ तक ट्रान्सवालमें १०,००० लोग आये हों तो आश्चर्यकी बात नहीं है। सन् १८९६ में भारतमें प्लेग हुआ। सन् १८९७-९८ में भीषण अकाल पड़े। उस समय भारतसे हजारों लोग बाहर गये। सन् १८९७ में, नेटालमें सख्त कानून बनाये गये। इन सबका यह परिणाम हुआ कि ट्रान्सवालमें बहुत-से भारतीय आये। यद्यपि उस समय विदेशी राज्य था तब भी भारतीयोंको आनेकी पूरी छूट थी। उन्हें रोकनेके सम्बन्धमें स्वर्गीय श्री क्रूगरसे प्रार्थना की गई थी। वह उन्होंने अनसुनी कर दी। उस समय 'नादरी', 'कूरलैंड', 'हुसैनी', 'क्रीसेंट' ये चार जहाज़ बम्बई तथा दक्षिण आफ्रिकाके बीच आते-जाते थे और प्रत्येक जहाज सैकड़ों भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें लाता था। प्रत्येक जहाज वर्षभर में चार फेरे करता था और यदि प्रत्येक जहाजमें तीन सौ भारतीय आये हों तो १६ फेरोंमें एक वर्ष में अवश्य ही ४,८०० भारतीय आये होंगे।