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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१२१

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१०३. जॉर्ज वाशिंगटन

अमेरिकाका पहला राष्ट्रपति

अंग्रेजीके छात्र पुस्तकोंमें पढ़ चुके हैं कि एक दिन बालक जॉर्जने एक बेरका पेड़, जो उनके पिताको अत्यन्त प्रिय था, खेल-खेलमें काट दिया था। पिताने जब अपने पेड़का यह हाल देखा तब उसके बारेमें जॉर्जसे पूछा। जॉर्जने उत्तर दिया, "पिताजी, मुझसे झूठ तो नहीं बोला जा सकता। यह पेड़ मैने काटा है।" पिताने यह प्रश्न बहुत क्रोधमें किया था। लेकिन जॉर्जने जब आँखोमें आँसू भरकर निर्भीक उत्तर दिया तो वे खुश हो गये और उन्होंने अपने पुत्रके अपराधको दरगुजर कर दिया। उस समय जॉर्ज बहुत ही छोटा था।

जिस लड़केके मनमें सत्य इस तरहसे बद्धमूल था वह अपनी ५५ वर्षकी उम्रमें अमेरिकाका, जिसका नाम आज दुनियामें फैला हुआ है, पहला राष्ट्रपति बना। उसके राष्ट्रपति बननेके समय लोग उसे राजा बनाने तथा मुकुट पहनानेके लिए तैयार थे। लेकिन उसने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया।

जॉर्ज वाशिंगटनका जन्म २२ फरवरी, १७३२ को वर्जिनिया राज्यके वेस्ट मोरलैंड शहरमें एक धनी घरमें हुआ था। उसके जीवनके पहले सोलह वर्षका हाल पूरी तरह किसीको मालूम नहीं है। १६ वर्षकी उम्र तक उसने बहुत कम पढ़ा-लिखा था। उसके बाद वह एक जमींदारीका मैनेजर नियुक्त किया गया। इस समय उसने अपनी होशियारी और बहादुरी दिखाई। यहाँतक कि २३ वर्षकी उम्रमें वह वजिनियाकी फौजका प्रधान सेनापति बना दिया गया।

उस समय उत्तर अमेरिका इंग्लैंडके अधिकारमें था। लेकिन अमेरिकाके लोगों और इंग्लैंडके बीच संघर्ष चला करता था। अमेरिकामें कुछ कर लगाये गये। अमेरिकावासियोंको वे ठीक नहीं लगे। इस समय और भी झगड़े थे। इससे आखिरमें अमेरिका और इंग्लैंडके लोगोंके मन इतने खट्टे हो गये कि लड़ाई शुरू हो गई। अंग्रेजी सेना कवायद सीखी हुई और तैयार थी। बेचारे अमेरिकी लोग देहाती थे। उन्हें हथियारोंका प्रयोग करना भी पूरी तरह नहीं आता था। वे फौजके अनुशासित जीवन और कष्टोंसे अपरिचित थे। ऐसे लोगोंको काबूमें रखने, उनसे काम लेकर अमेरिकाको स्वतंत्र करने और अंग्रेजोंके बन्धनोंसे मुक्त होनेका काम वाशिंगटनपर आया। लोगोंने उसको प्रधान सेनापति बनाया। उस वक्त वाशिंगटनने कहा --"मैं इस सम्मानके योग्य बिलकुल नहीं हूँ। फिर भी आप मुझे नियुक्त करते है तो मैं लोगोंकी सेवाके लिए यह पद बिना वेतन स्वीकार करता हूँ।" ऐसे ही शब्द उसने अपने एक मित्रको भी लिखे थे; इसलिए ये सिर्फ कहने भरके लिए कहे गये हों, यह बात नहीं थी। दरअसल, वह खुद मानता था कि उसमें पर्याप्त बल नहीं है। फिर भी जब उसपर जिम्मेदारी आ ही गई, तब उसने हर तरहकी जोखिम उठाकर और रात-दिन काम करके लोगोंके मनोंपर इतना प्रभाव डाला कि लोग उसकी आज्ञाका पालन तुरन्त करते थे, और वह जो भी कष्ट सहन करनेके लिए कहता, सहन कर लेते थे । आखिर अंग्रेजी फौजें हारी और अमेरिका स्वतंत्र हुआ। अमेरिकाके स्वतंत्र होते ही जॉर्ज वाशिंगटनने अपना पद छोड़ दिया। लेकिन लोगोंके हाथ तो हीरा लगा था, वे उसे छोड़नेवाले न थे। इससे वह स्वराज्य प्राप्त होनेपर सन् १७८७ में अमेरिकाका पहला राष्ट्रपति बनाया गया। इस पदपर बैठनेके बाद भी उसके मनमें स्वार्थ साधनेकी बात कभी नहीं आई। लड़ाईके बाद अपनी थैलियाँ भरनेवाले ढोंगी देशभक्त हमेशा खड़े हो जाते हैं। इन सबको वाशिंगटनसे