दबकर रहना पड़ता था। १७९२-९३ में वह फिर राष्ट्रपति चुना गया। उसने जिस तरह युद्धमें वीरता दिखाई थी, उसी तरह अपने राष्ट्रपति-कालमें देश-सुधारके कामोंमें, लोगोंका संगठन करनेमें और देशकी प्रतिष्ठा बढ़ानेमें भी दिखाई । एक लेखकने लिखा है कि “वाशिंगटन जैसे युद्धकालमें अग्रणी था, वैसे ही शान्तिकालमें भी अग्रणी था और उसने लोगोंके मनोंमें सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया था।" उससे तीसरी बार भी राष्ट्रपति-पद लेनेके लिए आग्रह किया गया । लेकिन उसने इससे इनकार कर दिया और अपनी जमींदारीमें जाकर रहने लगा।
१४ दिसम्बर १७९९ को अकस्मात् बीमारीसे इस वीर पुरुषकी मृत्यु हो गई। वह कदमें बहुत ऊँचा था। उसकी ऊँचाई छः फुट तीन इंच मानी जाती है। उसके हाथ इतने लम्बे थे जितने कि उसके समयमें किसी अन्य व्यक्तिके नहीं थे। उसका स्वभाव हमेशा नम्र और दयालु था। उसकी देशभक्तिके फलस्वरूप आज अमेरिका इतना ऊँचा उठा है। और जब तक अमेरिका है तब तक वाशिंगटनका नाम भी रहेगा। हमारी प्रार्थना है कि भारत भी ऐसे वीर पुरुषोंको जन्म दे।
१०४. पत्र: छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
सितम्बर ३०, १९०५
चि० आनन्दलाल लिखता है कि मयुरी लेनमें दफ्तर लेनेका निर्णय हुआ है। यदि यह बात सच है तो ऐसा किया नहीं जाना चाहिए। इस तरहके परिवर्तन करने हों तो पहले मुझसे पूछ लेना जरूरी है। मेरा खयाल है, ग्रे स्ट्रीट या फील्ड स्ट्रीटमें दफ्तर रखने में हर्ज नहीं है।
रामनाथको चि० जयशंकरके सुपुर्द कर दें, बशर्ते कि वह खुशीसे जाना चाहे । जयशंकरको उसके व्यापारमें कठिनाई होती होगी। मनसुखभाईका यहाँ आना संभव है। उनका एक लम्बा पत्र मेरे पास आया है। उससे प्रकट है कि वे यहाँ आनेको तड़प रहे हैं। वे केवल अपने माता-पिताकी आज्ञाकी प्रतीक्षामें हैं।
क्लार्क्सडॉर्पसे पत्र आया है। उसे मैं साथ भेज रहा हूँ। वहाँसे रुपया बिलकुल नहीं आया है। तुमने रुपयेकी प्राप्ति किस अंकमें स्वीकार की है ? यह लिखते-लिखते मुझे याद आ रहा है कि पहले क्रूगर्सडॉर्पकी रकम एक मुश्त स्वीकार की गई थी। फिर जब मैंने लिखा तो एक एक व्यक्तिको रकमें स्वीकार की गई। इसमें कुछ गड़बड़ी होना संभव है।
तुम्हारा पत्र दोपहर बाद मिला।
मुझे दफ्तरको फिलहाल मयुरी लेन ले जाना ठीक नहीं मालूम होता। क्रूगर्सडॉर्पसे तुम्हारे पास कोई पत्र आया हो तो भेजना। मुझे जितना भी रुपया मिला है उसकी प्राप्ति स्वीकार कर ली गई है।
१. मूलमें १८९२-३ दिया है जो स्पष्टतया भूल है।