जहाँ दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी शिक्षाको निरुत्साहित करनेका प्रत्येक प्रयत्न किया जा रहा है; स्वयं भारतमें ऐसे लक्षणोंकी कमी नहीं है जिनसे प्रकट होता है कि लोगोंके हृदयोंमें शिक्षा-प्रेमने गहरी जड़ पकड़ ली है, और सम्भवतः कुछ वर्षों में ही हम देखेंगे कि भारतके उन्नत भागोंमें अनिवार्य शिक्षा अपना ली गई है। मैकॉलेने शिक्षा सम्बन्धी अपना प्रसिद्ध स्मरणपत्र १८३६ में लिखा था। भारतमें शिक्षाको वास्तविक प्रोत्साहन तभी मिला था, परन्तु फिर भी १९०१ की जनगणनामें पता लगा कि प्रति दस स्त्रियोंमें से केवल एक स्त्री साक्षर है। बड़ौदा रियासतके लोकशिक्षा-निदेशक श्री एच० डी० काँटावालाने अगस्तके 'ईस्ट ऐंड वेस्ट' में एक मूल्यवान लेख लिखा है। उसके अनुसार १९०१ में, भारतमें सब वर्गोंके विद्यार्थियोंकी संख्या ३२,६८,७२६ थी, और उनके शिक्षणपर दो करोड़ रुपयेसे कम, अर्थात् कोई सवा तेरह लाख पौंड, व्यय हुए थे। इसमें से एक-चौथाईसे कुछ अधिक व्यय प्रारम्भिक शिक्षापर किया गया था। शिक्षापर व्यय सरकारको सारी आमदनीका १.५ प्रतिशत है। यह स्वीकार किया जा चुका है कि भारतमें प्रारम्भिक शिक्षापर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, और उसका प्रधान कारण यह है कि भारत सरकारको अर्थाभावके कारण इससे अधिक व्यय करना असम्भव लगता है। हम फिलहाल इस प्रश्नपर विचार नहीं करेंगे कि शिक्षाकी अधिक प्रगतिके लिए धन क्यों उपलब्ध नहीं है, परन्तु हम यह कह सकते हैं कि यह मामला अब केवल सरकारके हाथमें नहीं रहा है।
जो लोग शिक्षाके सुफलका रसास्वादन कर चुके हैं वे उत्सुक है कि उसमें से उनके कम भाग्यशाली बन्धुओंको भी हिस्सा मिले। हालमें बम्बई नगर-निगमने अनिवार्य शिक्षा-पद्धतिको स्वीकार करते हुए एक प्रस्ताव पास किया है। महाविभव महाराजा गायकवाड़ने एक अमली कदम उठाया है; और श्री काँटावालाने अपने लेखमें प्रधानतया उसी प्रयोगको चर्चा की है जो कि अनिवार्य शिक्षाके सम्बन्धमें इस समय बड़ौदामें किया जा रहा है। महाविभवने १८९२ में अपनी रियासतके कुछ भागोंमें अनिवार्य शिक्षा शुरू करनेका विचार प्रकट किया था और इस कामको जिम्मेदारी श्री काटावालाको सौंपी थी। उन्होंने स्वयं अपने मार्ग-प्रदर्शनके लिए निम्न सिद्धान्त स्थिर किये थे:
(१) किसी स्थानमें अनिवार्य शिक्षा कानून लागू करनेसे पहले सरकार वहाँ शिक्षाके साधन उपलब्ध करे।
(२) अनिवार्य शिक्षा कानून बालकों और बालिकाओं, दोनोंपर लागू किया जाये।
(३) अनिवार्य शिक्षा कानून लागू करनेके लिए बालकोंकी आयु सातसे बारह और बालिकाओंकी सातसे दस वर्षतक रहे।
(४) पाठ्यक्रम प्रारम्भिक हो।
१. मस वेविंगटन मेकॉले (१८००-५९), भारत-सरकारकी सामान्य लोक शिक्षा समितिके अध्यक्ष और गवर्नर-जनरलकी कार्यकारिणी परिषदके कानून-सदस्य थे। उन्होंने भारतमें अंग्रेजी शिक्षा शुरू करनेकी सिफारिश अपने २ फरवरी १८३५ के स्मरणपत्रमें की थी। किन्तु, जबतक विभिन्न विचार-पक्षोंमें इस सम्बन्धमें कोई निर्णय न हो गया तबतक सरकार भारतमें शिक्षाकी कोई एक-सी योजना आरम्भ नहीं कर सकी।