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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१२७

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भारतमें अनिवार्य शिक्षा

(५) अनिवार्य उपस्थिति वर्षमें १०० दिनसे अधिक नहीं हो।

(६) नियमके उल्लंघन-कर्ताओंके विरुद्ध कार्रवाई फौजदारी कानूनके अन्तर्गत नहीं, केवल दीवानी कानूनके अन्तर्गत की जाये और उनपर किये गये जुर्मानेकी वसूली भी दीवानी जाब्तेसे की जाये।

श्री काँटावालाने विशेष उत्साह दिखाया और वे उलझन-भरी गम्भीर कठिनाइयोंसे डरे नहीं। उन्होंने ऐसे दस गाँव चुने जो रियासतमें सबसे अधिक पिछड़े हुए थे (क्योंकि महाराजा गायकवाड़की इच्छा थी कि इस पद्धतिपर अधिकतम प्रतिकूल परिस्थितियोंमें अमल करके देखा जाये) और उनमें ऊपर लिखे सिद्धान्तोंको लागू किया। शिक्षा निदेशकने गाँवोंके पटेलोंसे कई बार भेंट की। उन्होंने लोगोंके विरोधका सामना किस प्रकार किया और उनकी जिद-भरी भावनाओंको अपने विचारोंके अनुकूल कैसे बनाया, ये सब घटनाएँ बड़ी रोचक है। परन्तु यहाँ हम केवल इस प्रयोगका परिणाम, लेखकके अपने शब्दोंमें, बतायेंगे।

इस प्रकार में बड़ौदा रियासतके सबसे पिछड़े हुए भागमें बहुत कम समयके भीतर अनिवार्य शिक्षा शुरू करने में समर्थ हो गया। मुझे इस योजनाको सफलतापूर्वक चलानेके लिए महीनों विशेष ध्यान देना पड़ा। वर्ष समाप्त होते-होते, अनिवार्य शिक्षाको आयुके प्रायः सभी, अर्थात् ९९ प्रतिशतसे अधिक बच्चे स्कूलोंमें भर्ती हो गये। यह परिणाम ऐसा है जो इंग्लैंड तथा अन्य उन्नत देशोंमें भी प्राप्त नहीं हो सका है। इस कानूनपर सफलतापूर्वक अमल होनेसे महाराजाको, दस-दस नये गाँवोंके समूहोंमें अनिवार्य शिक्षा लागू करनेकी प्रेरणा मिली। अमरेली ताल्लुकेमें अनिवार्य शिक्षा बारह वर्षसे अधिक समय तक सफलतापूर्वक कसौटीपर कस कर देखी जा चुकी है, और सदा यह देखा गया है कि शत-प्रतिशत बच्चे स्कूलोंमें हाजिर रहे, और लोगोंने इसके विरुद्ध कभी कोई गम्भीर शिकायत नहीं की। हालमें महाराजाने एक योजना स्वीकृत की है कि रियासतके दो भागोंमें अनिवार्य शिक्षा कानून उन बच्चोंपर लागू किया जाये जिनके माता-पिताओंकी एक निश्चित वार्षिक आय है।

यह सफलता ध्यान देने योग्य है। फिर भी भारतके करोड़ों निरक्षर लोगोंका खयाल करते हुए यह एक छोटा-सा अंकुर-मात्र है। कोई भी यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि कालान्तरमें यह अंकुर कितना बड़ा हो जायेगा। इस प्रयोगसे हम दक्षिण आफ्रिकी लोगोंको भी कुछ- न-कुछ शिक्षा अवश्य मिलती है। हम विभिन्न सरकारोंसे भारतीय बालकोंके लिए उपयुक्त शिक्षाकी व्यवस्था करनेकी आशा करें, यह उचित ही है। जिन भारतीयोंकी स्थिति अन्य भारतीयोंसे अच्छी है और जो शिक्षाके लाभोंसे परिचित है, उनका कर्तव्य है कि यदि दक्षिण आफ्रिकी सरकारें उनकी सहायता नहीं करतीं तो वे स्वयं भारतीय बालकोंकी शिक्षाकी उपयुक्त व्यवस्था करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,' ७-१०-१९०५