लेना हमारे लिए निषिद्ध है। हम इन उदाहरणोंका जिक्र परमश्रेष्ठका ध्यान उस विषम स्थितिकी ओर खींचनेके लिए कर रहे हैं जिसमें हम, निर्दोष होनेपर भी, डाल दिये गये हैं। हमें लांछित और अपमानित करनेका कोई भी अवसर हाथसे जाने नहीं दिया जाता। हम ऐसे अन्य उदाहरण देकर परमश्रेष्ठको परेशान करना नहीं चाहते। परन्तु हमारा निवेदन यह है कि ब्रिटिश सरकारसे यह आशा रखनेका हमें अधिकार है कि वह इस अपमानसे हमारी रक्षा करेगी और हमारे लिए उस स्वतन्त्रताको सुनिश्चित करायेगी जिसके उपभोगके हम, राजभक्त ब्रिटिश प्रजाकी हैसियतसे, जहाँ-कहीं भी ब्रिटिश ध्वज फहराता है वहाँ सर्वत्र, अधिकारी है।
परमश्रेष्ठने हमारा निवेदन धैर्यपूर्वक सुना, इसके लिए हम उनका नम्रतापूर्वक धन्यवाद करते हैं, और अन्तमें आशा करते हैं कि परमश्रेष्ठके इस नगरमें पधारनेके फलस्वरूप हमारी स्थिति सुधरेगी।
११७. लॉर्ड सेल्बोर्न और ट्रान्सवालके भारतीय
परमश्रेष्ठ उच्चायुक्तने अपने ट्रान्सवालके दौरेमें, इस उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके विषयमें दो बहुत महत्त्वपूर्ण भाषण दिये हैं। इनमें उनका पॉचेफस्ट्रमका भाषण, जो अन्यत्र प्रकाशित किया गया है, अधिक महत्त्वपूर्ण है। लॉर्ड सेल्बोर्नने उसमें बताया है कि उन्होंने अपने अल्पवासमें इस प्रश्नका अध्ययन किया है। उन्हें सरकारको प्रतिष्ठा बहुत प्यारी है, और वे मानते हैं कि युद्धसे पहले ब्रिटिश भारतीयोंको जो वचन दिये गये थे वे पूरे करने होंगे। यह देखकर हमें और भी प्रसन्नता हुई कि लॉर्ड महोदयने भारतीय घोषणा' का अर्थ यह लगाया है कि उससे सारी दुनियामें भारतीयोंके पूर्ण ब्रिटिश प्रजाके अधिकार सुरक्षित होते हैं। इस सबके लिए, और इससे भी बहुत अधिकके लिए, हम सचमुच परमश्रेष्ठके कृतज्ञ हैं। जब परस्पर-विरोधी स्वार्थों के बीच न्याय करनेकी इतनी स्पष्ट इच्छा विद्यमान है तब इस आशाके लिए भी काफी गुंजाइश है कि निकट भविष्यमें इस कठिन समस्याका ऐसा हल निकल आयेगा, जो सबको स्वीकृत होगा।
परन्तु एक बातसे, जिसका लॉर्ड सेल्बोर्नने वचन दिया बताते हैं, हमें बड़ी बेचैनी हो रही है। खबरके अनुसार, उन्होंने ये शब्द कहे :
युद्धसे पहले जो भारतीय यहाँ नहीं थे उन्हें यहाँ तबतक नहीं आने दिया जायेगा जबतक आपको अपनी संसद नहीं हो जायेगी, और आप अपनी सम्मति अपने प्रतिनिधियों द्वारा प्रकट नहीं कर सकेंगे। यह वचन में आपको आपके गवर्नर और उच्चायुक्तकी हैसियतसे देता हूँ।
हमें निश्चय है कि परमश्रेष्ठने जब यह वचन दिया तब वे इसकी पूर्तिके परिणामोंका अन्दाज भली प्रकार नहीं लगा सके होंगे। जो भारतीय इस देशमें पहलेसे बसे हुए हैं और अबसे आगे जिनके आनेकी सम्भावना है, उनमें फर्क करनेकी परमश्रेष्ठको बड़ी चिन्ता है।
१. महारानी विक्टोरियाकी १८५८ की घोषणा ।