शिक्षकके रूपमें बह चार वर्ष रहे। बादमें दीवानके सहायकके रूपमें उत्तरदायित्वपूर्ण स्थानपर पहुँचे और इसके बाद वे पेशकार दीवान बने । उस पदपर इन्होंने अच्छी प्रतिष्ठा पाई, क्योंकि उस समय राज्यकी हालत बहुत खराब थी। स्वर्गीय श्री जे. ब्रूस नॉर्टनने उनके बारेमें कहा है कि "वे एक बड़े विद्वान और राज-काजके कुशल प्रशासक थे। उन्होंने एक वर्षके थोड़े-से समयमें राज्यमें काफी शान्ति स्थापित कर दी थी। उनके राज्य-कालमें हरएकको निर्भय, पक्षपात-रहित इनसाफ मिलता था और चोरी, गुंडागिरी और जालसाजी बहुत ही कम हो गई थी।"
बावणकोरके दीवान बड़े कमजोर मनके थे और राजा भी बहुत ही नादान था। राज्यका कारोबार कैसे चल रहा है, इसका उन्हें कुछ भी पता नहीं था । राज्यके अधिकारी बड़े गन्दे मनके और नीति-भ्रष्ट थे। वेतन भी उनको बहुत कम मिलता था और कभी-कभी तो महीनोंका वेतन चढ़ जाता था। अंग्रेज सरकारने सहायताके रूपमें जो रकम दी थी वह अभी लौटाई नहीं गई थी, और कोषमें भी कुछ नहीं था। कर बहुत होनेसे व्यापार बड़ी खराब हालतमें था। इसलिए लोग बड़े गरीब हो गये थे। इससे लॉर्ड डलहौज़ीका ध्यान उस ओर गया। उन्होंने राज्यका कारोबार अंग्रेज सरकारके हाथमें लेनेका निर्णय किया और रियासतको मद्रास इलाके में जोड़ देनेके लिए वे स्वयं ऊटकमंड गये। इस समय महाराजाने माधवरावको दीवानकी जगह नियुक्त किया और राज्य व्यवस्था सुधारनेके लिए अंग्रेज सरकारसे सात वर्षका समय मांगा। इस प्रकार माधवरावने अपनी मेहनत और प्रामाणिकतासे तीस वर्षकी युवावस्थामें प्रतिष्ठित पद प्राप्त किया। उनके कार्य-कालकी जानने योग्य बात राजस्व सम्बन्धी है। उनके दीवानका पद ग्रहण करते समय राज्यकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी। फिर भी उन्होंने आते ही पहलेसे चले आ रहे भूमिकर और अन्य ऐसे कर जो राज्यको समृद्धिके लिए हानिकर थे, रद कर दिये। माधवरावने इजारदारीकी प्रथाको हटा दिया। बाहर भेजे जानेवाले मालपर उन्होंने १५ प्रतिशत कर लगाकर वार्षिक आयकी कमीको पूरा किया। ज्यों-ज्यों राज्यकी समृद्धि बढ़ती गई, त्यों-त्यों बे उस करको घटाते गये और आखिर ५ प्रतिशतपर ले आये। इसके बाद उन्होंने तम्बाकूका ठेका भी छोड़ दिया। पहले सरकार अपनी जिम्मेवारीपर ठेकेदारोंसे तम्बाकू खरीद लेती थी और बादमें लोगोंको बेचती थी। उन्होंने इसके बजाय लोगोंको बाहरसे तम्बाकू खरीदनेकी इजाजत दे दी। कर बहुत कम होनेसे बाहरसे आनेवाले मालको बहुत उत्तेजन मिलता था। इसके बाद इन्होंने और भी बहुत-से छोटे-छोटे कर समाप्त कर दिये। क्योंकि उनसे राज्यको आमदनी नगण्य होती थी, किन्तु व्यापारियोंको नुकसान बहुत ज्यादा होता था। एक गाँवमें भूमि-कर बहुत ज्यादा था। उसे उन्होंने एकदम कम करवा दिया। १८६५ में ब्रिटिश सरकार तथा कोचीन और त्रावणकोर राज्योंके बीच व्यापारिक समझौता किया। इससे जो माल ब्रिटिश और कोचीन राज्योंसे आता था उसपर चुंगी प्रायः समाप्त हो गई थी।
निपुणतापूर्वक राज्य-संचालन करनेसे उनको ब्रिटिश सरकारने के० सी० एस० आई० का खिताब दिया। मद्रासकी विशाल सभामें यह खिताब देते हुए लॉर्ड नेपियरने उनकी बहुत प्रशंसा की। सन् १८७२ में उन्होंने अपने पदसे त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने राज्यमें अन्धेरगर्दीकी जगह सुशासन स्थापित किया और इस प्रकार प्रजाके जान और मालको सुरक्षित कर दिया। उन्होंने बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की और कारीगरोंको प्रोत्साहन दिया। उन्होंने लोकोपयोगी अन्य निर्माणकार्य भी सम्पन्न कराये और कृषिको बढ़ावा दिया। यदि माधवराव न होते तो त्रावण- कोरका राज्य राजाके हाथमें न रहता। पेरीक्लीज़ने एथेन्सको और ऑलिवर कॉमवेलने इंग्लैंडकी
१. माक्विस डलहौजी, (१८१२-६०), भारतके गवर्नर जनरल, १८४८-५६ ।