१२७. जोहानिसबर्गमें प्लेगका इतिहास
गत वर्ष जोहानिसबर्गमें जो गिल्टीवाला प्लेग फैला था, उसकी चिर-वाग्दत्त रिपोर्ट अब प्रकाशित हो गई है। यह एक सौ तीन पृष्ठोंकी एक मोटी जिल्द है। इसमें अनेक नक्शों द्वारा इस महामारीका प्रत्यक्ष चित्र खींच दिया गया है। इसके लेखक डॉ० पेक्स हैं। उन्होंने इसे तैयार करने में भारी श्रम किया है, और जनताके सामने एक अति विद्वत्तापूर्ण विवेचन उपस्थित कर दिया है। अवश्य ही रिपोर्टका वह भाग सर्वाधिक रोचक होना चाहिए, जिसमें प्लेगकी उत्पत्ति बताई गई है। डॉ० पेक्सके तर्क ठीक होते तो उनके निकाले हुए निष्कर्ष उचित होते। परन्तु हमें सन्देह है कि उनके बहुतसे महत्त्वपूर्ण तर्क बिल्कुल गलत है।
शायद यह अत्यन्त दुर्भाग्यकी बात है कि रिपोर्ट तैयार करनेपर इतना मूल्यवान समय और धन व्यय करनेसे पहले, प्लेगकी शुरुआतके बारेमें मुनासिब अदालती जाँच नहीं कराई गई। डॉ० पेक्सने इसका जो आश्चर्यजनक कारण बताया है वह वियना-आयोगके निष्कर्षोके विरुद्ध तो है ही, नेटालमें पहले-पहल प्लेग फैलनेपर नेटाल सरकार द्वारा नियुक्त आयोगकी रिपोर्ट और स्वर्गीय श्री एस्कम्बको प्राप्त भारत-सरकारके तारके भी विरुद्ध है। डॉ० पेक्सका दावा है कि “पहले पहल बीमारी बम्बईसे आयातित उस चावलसे शुरू हुई जिसमें प्लेगकी छूत थी हमने अभी जिन अधिकारियोंका हवाला दिया है वे सब इस निष्कर्षपर पहुंचे थे कि चावलसे प्लेगकी छूत नहीं फैलती। डॉ० पेक्सने जिन आधारोंपर अपने निष्कर्ष निकाले हैं उनमें से कुछ ये हैं : पहले-पहल यह बीमारी दूकानदारोंको हुई, भारतीय दूकानदार दिसम्बर १९०३ में बम्बईसे चावलका आयात करते थे और उन्होंने निश्चित रूपसे कहा कि “उस चावलमें चूहोंकी लेड़ियाँ थीं", और बम्बईसे उस चावलका निर्यात रोकनेकी कोई विशेष सावधानी नहीं बरती गई जिसमें शायद छूत थी।
अब डॉ० पेक्सके सिद्धान्तके लिए दुर्भाग्यकी बात यह है कि उनके ये सब तर्क निरा- धार हैं। पहली भूल रिपोर्ट तैयार करनेमें उन्होंने यह की है कि वे रोग फैलनेकी केवल सरकारी तारीखको मानकर चले हैं, और उन्होंने उससे पहलेके सारे ज्ञात इतिहासकी उपेक्षा कर दी है। तब यह कहा गया था, वस्तुत: असन्दिग्ध रूपसे सिद्ध कर दिया गया था, कि जोहानिसबर्गमें प्लेग १८ मार्चसे भी पहले वर्तमान था। जिस पत्र-व्यवहारकी ओर प्लेग- अधिकारियोंका ध्यान, उनके पदको हैसियतसे खींचा जा चुका था, उस सबको डॉ० पेक्सने अपनी रिपोर्ट में उपेक्षित कर देना ठीक समझा है। उन्होंने स्वर्गीय डॉ० मैरेसके मामलेकी भी उपेक्षा कर दी है, जिससे कि असन्दिग्ध रूपसे यह प्रगट हो जाता है कि यह रोग, प्लेगके कारण स्वयं उनका देहान्त होनेसे, बहुत पहले वर्तमान था। इसलिए यह सिद्धान्त कि प्लेगका आरम्भ दूकानदारोंसे हुआ, झूठा सिद्ध हो जाता है। इतना ही नहीं, जिन दो व्यक्तियोंके नाम डॉ० पेक्सने दिये हैं और कहा है कि वे दूकानदार थे, वे वस्तुतः दुकानदार थे ही नहीं, जैसा कि हमें संयोगसे मालूम हुआ है। यदि रोग १८ मार्च से शुरू माना जाये तो इस रोगके पहले शिकार वे मजदूर हुए थे, जो खानोंसे आये थे।
हम जानना चाहेंगे कि यह सूचना उन्हें कहाँसे मिली कि चावलका आयात बम्बईसे किया जा रहा था। साधारणतया चावल बम्बईसे नहीं, कलकत्तेसे आयात किया जाता है, और जब
१. देखिए, “पत्र : डॉ० पोर्टरको", खण्ड ४, पृष्ठ १३८-९, १४३ तथा १५८ ।