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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१५३

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१३४. एक जागरूक भारतीय

इंग्लैंडके प्रसिद्ध अखबार 'डेली मेल में एक भारतीयकी भारतमें दिखाई गई ऊँचे दर्जेकी वफादारीका उदाहरण दिया गया है। खान बहादुर मुहीउद्दीन नामके एक सर्वेक्षक थे। उन्हें १९०३ में राजपूतानेके एक बहुत ही वीरान क्षेत्रमें पैमाइशका काम दिया गया। साथमें चार पथदर्शक, और चार सहायक सर्वेक्षक और दो ऊँट थे। वे रात-रातमें सफर करते थे। एक रातको उनकी मशकमें छेद हो जानेसे सारा पानी बह गया। पथ-दर्शकोंने लौटनेकी सलाह दी लेकिन बहादुर मुहीउद्दीन पीछे लौटनेवाले नहीं थे। उन्होंने एक पथदर्शक पानीकी खोजमें भेजा। पानी आया, लेकिन वह बेहद खारा था। आगे बढ़नेपर थोड़ा और पानी मिला, लेकिन वह जल्दी ही खत्म हो गया। खान बहादुर बहुत सोचमें पड़ गये। आखिर ऊँटवाले ऊँटोंपर बाँध दिये गये और ऊँटोंको उनके इच्छानुसार चलनेके लिए छोड़ दिया गया। इस बीच प्यासकी खुश्कीके मारे उन्हें बेहोशी आ गई । अन्तमें उन्हें पानी की जगह मिली, और वे होशमें आये। किन्तु इस प्रयत्नमें मुहीउद्दीन और उनके साथी बिछुड़ गये थे और अन्तमें अपना फर्ज अदा करते हुए मुहीउद्दीनको अपने प्राणोंका त्याग करना पड़ा। उनके साथियोंपर उनके इस उत्साहका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और सबने बड़ी बहादुरीसे काम किया। ऐसी मिसाले बिरली ही मिलती हैं। खान बहादुरकी लाश बड़े सम्मानके साथ दफनाई गई, और जो आदमी जीवित बचे थे उनको सरकारने अच्छा इनाम दिया।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१३५. इंग्लैंड कैसे जीता

"दादी, डर क्या चीज है? मैंने देखा नहीं है।" अपनी दादीसे यह सवाल करनेवाले बालकने ही इंग्लैंडको पृथ्वीमें जबरदस्त बनाया है।

हमारे मनमें बहुत बार आता होगा कि अंग्रेज हमपर क्यों राज करते हैं ? इनको हम कई बार तिरस्कारको दृष्टिसे देखते होंगे। हमारे मनोंमें आकांक्षा जगती है कि भारत स्वतन्त्र हो जाये तो कैसा अच्छा हो।

ऐसे प्रश्नोंका और ऐसी आकांक्षाओंका उत्तर हमें पिछले सप्ताह मिला है।

होरेशियो नेल्सन १८०५ के अक्टूबर मासकी २१ तारीखको मरा था। उसकी मृत्यु-शताब्दी, जहाँ भी अंग्रेजी झंडा फहराता है, वहाँ सर्वत्र इस महीनेकी २१ वीं तारीखको मनाई गई थी। वह १७५८ के २९ सितम्बरको जन्मा था। इसका अर्थ यह हुआ कि उसकी मृत्यु ४७ वर्षकी आयुमें हो गई थी। इतनी छोटी उम्रमें उसने जो काम किया, जो शौर्य प्रदर्शित किया और जो फर्ज अदा किया, वह दुनियामें कम लोगोंने ही किया होगा। यह माना जाता है कि तोजोने जापानके लिए ऐसा किया है। लेकिन तोजोकी जीतें अभी नई हैं। इसलिए इनका परिणाम हम देख नहीं सकते हैं। अभी हमारा मन शान्त नहीं है। इसलिए हम उनपर सही-सही विचार नहीं कर सकते।

१. जापानी नौसेनाध्यक्ष, जिसने १९०५ की रूस और जापानकी लड़ाई में रूसी बेड़ेको हराया था । देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ४८८-९ ।