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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१६६

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१४५. इंग्लैंड जानेवाला भारतीय प्रतिनिधिमण्डल

शाही संसदका आम चुनाव अब होनेवाला है। वह किसी भी दिन हो सकता है। श्री चेम्बरलेनने अपनी सम्मति प्रगट की है कि यह जितनी जल्दी हो जाये उतना ही अच्छा है। भारतीयोंके लिए सबसे बड़ी दिलचस्पीकी बात वह प्रतिनिधिमण्डल है, जो भारतकी ओरसे ब्रिटिश मतदाताओंके सामने भारतके पक्षकी वकालत करनेके लिए इंग्लैंड गया है। जो व्यक्ति इस प्रतिनिधिमण्डलमें गये हैं उनकी, और जिस प्रयोजनसे वे गये हैं उसकी, जानकारी शायद हमारे दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय पाठकोंके लिए भी अप्रासंगिक नहीं होगी।

माननीय प्रोफेसर गोखले और लाला लाजपतराय' राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा भेजे हुए प्रति- निधियोंके रूपमें लन्दनमें मौजूद हैं, और इन दोनोंके शिरोमणि भारतके पितामह श्री दादाभाई नौरोजी हैं। उन्हें विशेष रूपसे भेजा नहीं गया। वे वहीं रहकर स्वेच्छासे देश-निकालेका जीवन बिता रहे हैं। निरन्तर आत्मत्यागका यह जीवन बिताते उन्हें आधी शताब्दीसे भी अधिक हो चुका है। श्री गोखलेने उनके विषयमें कहा है:

क्या खूब वह जीवन रहा है! उसकी मधुर पवित्रता, उसकी सादगी, उसकी विनम्र सहिष्णुता, उसकी उच्च त्याग-वृत्ति, उसका असीम प्रेम, उच्च आदर्शोंके लिए उसकी दृढ़ प्रवृत्ति -- इन सब गुणोंका जब ध्यान करते हैं तब अनुभव होता है, मानो किसी महत्तर विभूतिके सामने खड़े हों। जो राष्ट्र ऐसे व्यक्तिको जन्म दे सकता है, उसका भविष्य निश्चय ही आशापूर्ण है। भले ही, जैसा कि श्री रानडेने एक बार कहा था, वह तीस करोड़ लोगोंमें अकेला हो।

ऐसा है दादाभाईका शीर्ष-स्थानीय व्यक्तित्व । वे भारतीय देशभक्तोंको मन्त्रणा देने और अपनी सलाहसे उनका पथ-प्रदर्शन करनेके लिए सदा लन्दनमें विद्यमान रहते हैं।

श्री गोखले अभी तो बिलकुल जवान ही हैं, फिर भी भारतकी आशा उनमें केन्द्रित है। वे अनेक बार यश प्राप्त कर चुके हैं और अभी और करनेवाले हैं। युवक होते हुए भी वे कलकत्तेकी शाही विधान परिषद ( इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल) में नाम कमा चुके हैं। जिन लोगोंका उनसे मतभेद रहता है वे भी उनकी देशभक्ति और प्रभावशाली वक्तृत्व-शक्तिको मानते हैं। गणितपर उनका अधिकार अनुपम है। पूनाके फर्ग्युसन कॉलेजको बीस वर्षके लिए अपनी सेवाएँ पुरस्कारके बिना अर्पित करके, उन्होंने अपने प्रेममय जीवनको और भी पवित्र बना लिया है।

पंजाबके लाला लाजपतराय भी कुछ कम उदात्तमना नहीं हैं। वे पंजाबके माने हुए नेता है। वे अपनी कमाई और शक्ति, आर्य समाजके कार्योंको बढ़ानेमें लगा रहे है --आर्यसमाजसे

१. (१८६५-१९२८), सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता जो ‘पंजाब केसरी' कहलाते थे। १९०७ में ब्रिटिश सरकार द्वारा देशनिकाला दिया गया और कई वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिकामें रहे । १९२० में कांग्रेसके विशेष अधिवेशन, कलकत्ताके अध्यक्ष । साइमन कमिशनके बहिष्कारके हेतु किये गये प्रदर्शनके समय पुलिसकी लाठियोंसे घायल, और बादमें उसीके कारण देहावसान।

२. बम्बई उच्च न्यायालयके न्यायाधीश और प्रसिद्ध समाज-सुधारक, जिन्हें गोखले अपना गुरु मानते थे। देखिए, खण्ड २, पृष्ठ ४२०।