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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१७१

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१४९. सर टी० मुतुस्वामी ऐयर, के० सी० आई० ई०

सर टी० मुतुस्वामी ऐयरका जन्म तंजोरके एक गरीब परिवारमें २८ जनवरी, १८३२ को हुआ था। बहुत ही छोटी उम्रमें पिताका देहान्त हो जानेके कारण बचपनसे ही उनपर पैसा कमानेका बोझा आ पड़ा। इससे वे एक रुपये मासिक वेतनपर ग्राम-शिक्षकके रूपमें काम करने लगे। सन् १८४६ तक यह सिलसिला चला। इस बीच इस बालककी बुद्धि और उद्योगशीलता देखकर मुतुस्वामी नायकर नामक एक सज्जनके मनमें स्नेह पैदा हो गया। एक बार किसी गाँवकी नदीका बाँध टूट जानेकी खबर सुतुस्वामी नायकरको मिली। उसने अपने मुंशीको बुलाया। वह हाजिर नहीं था; इसलिए बालक मुतुस्वामीने उत्तर दिया। नायकरने उसको जाँच करनेका काम सौपा। मुतुस्वामी सब जगह घूमकर, सारी जानकारी ले आये। श्री नायकरको उसपर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जल्दी थी, इसलिए उन्होंने उसकी रिपोर्टको मंजूरी दे दी। बादमें उन्हें खबर मिली कि मुतुस्वामीकी लाई सारी जानकारी सही थी। इसपर श्री नायकर बहुत प्रसन्न हुए।

मुतुस्वामीको अपने इस प्रकारके जीवनसे सन्तोष नहीं था। उसने दृढ़तापूर्वक आगे बढ़नेका निश्चय किया और जब-जब समय मिलता, वह पाठशालाओंमें चला जाता। इससे श्री नायकरने उसको १८ महीने तक नेगापत्तम्के एक मिशन स्कूलमें रखा। फिर मद्रास हाई स्कूलमें भेजा और राजा सर टी० माधवरावके नाम परिचय-पत्र दिया। दिनों-दिन मुतुस्वामी पढ़ने में प्रगति करने लगा। उस समय श्री पॉवेल मुख्य शिक्षक थे। उन्होंने मुतुस्वामीका मूल्य आँक लिया था और उसपर विशेष ध्यान देते थे। सन् १८५४ में एक अंग्रेजी निबन्ध लिखकर उसने ५०० रुपयेका इनाम लिया। हाई स्कूलमें अपना अध्ययन पूरा करनेके बाद उसको ६० रुपयेपर शिक्षककी जगह मिली। बादमें तरक्की करते-करते उसे शिक्षाके अधिकारीकी जगह मिली। इस बीच सरकारने वकालतकी सनदकी परीक्षा शुरू की। मुतुस्वामीने इस परीक्षाकी तैयारी की और उसमें पहले नम्बरपर उत्तीर्ण हुआ। मुनसफोंकी जांच करनेके लिए समय- समयपर न्यायाधीश दौरा किया करते थे। एक बार न्यायाधीश बोकॉम अकस्मात् आ पहुँचा। वह मुतुस्वामी ऐयरका काम देखकर इतना अधिक खुश हुआ कि उसने कह डाला कि मुतु- स्वामी उसके बराबरीकी कुर्सी लेने योग्य है। मुतुस्वामीकी योग्यता इतनी अधिक प्रकट होने लगी कि उनको मद्रासमें मजिस्ट्रेटकी जगह दी गई। न्यायाधीश हॉलवे उनपर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने उनको और भी अध्ययन करनेको कहा । मुतुस्वामीने ऐसा ही किया। अध्ययनमें सहायता मिलनेकी दृष्टिसे उन्होंने जर्मन भाषा सीखी। मुतुस्वामी अत्यन्त स्वतन्त्र प्रकृतिके व्यक्ति थे। एक बार एक भारतीयने उच्च न्यायालयके एक न्यायाधीशपर मार-पीटका इलज़ाम लगाया। मुतुस्वामीने बेखटके उक्त न्यायाधीशके नाम समन जारी कर दिया। बड़े मजिस्ट्रेटने सूचना की कि उस न्यायाधीशको पेश होनेके लिए बाध्य न किया जाये। मुतुस्वामीने इसकी परवाह नहीं की। न्यायाधीशको उपस्थित रहना पड़ा और उसपर तीन रुपये जुर्माना हुआ। इसके बाद मुतुस्वामी ऐयर "लघुवाद" न्यायालयके न्यायाधीश बने । सन् १८७८ में उनको के०सी०आई०ई०का खिताब मिला और वे उच्च न्यायालयके न्यायाधीश नियुक्त हुए। इस न्यायालयके न्यायाधीश नियुक्त होनेवालोंमें वे प्रथम भारतीय थे। उनके फैसले इतने उत्तम होते थे कि आज तक ऐसा कहा जाता है कि सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज न्यायाधीशके साथ वे टक्कर ले सकते हैं। सुप्रसिद्ध श्री विटली स्टॉक्स कहते हैं कि मुतुस्वामी ऐयर और सैयद महमूदके फैसलोंके मुकाबलेके फैसले उन्होंने कम देखे