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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१७८

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१५७. तार: सर आर्थर लालीको

[जोहानिसबर्ग

नवम्बर २४, १९०५ के बाद]

गवर्नरके पदपर नियुक्त होनेके मद्रासके है। ब्रिटिश भारतीय संघ परमश्रेष्ठको उपलक्ष्यमें बधाइयाँ प्रदान करता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-१२-१९०५


१५८. व्यक्ति-कर

व्यक्ति-कर लगानेके विषयमें हमारे पास सैकड़ों भारतीयोंकी ओरसे जो शिकायतें आई हैं, उन्हें प्रकाशित न करना बुद्धिमानी न होगी। व्यक्तिगत रूपसे हमारा विचार है कि उप- निवेश जिन कठिनाइयोंसे गुजर रहा है उनमें प्रत्येक अच्छे नागरिकको हिस्सा बँटाना चाहिए, और वैसा करनेका एक सबसे अच्छा और सरल उपाय यह है कि उपनिवेशके राजस्वमें विशेष रूपसे अंशदान किया जाये। सरकारने व्यक्ति कर लगानेका कानून पास करना उचित समझा है, और प्रत्येक व्यक्तिको, चाहे वह किसी सम्प्रदायका हो, उसके सामने सिर झुकाना और यथाशक्ति प्रसन्नतासे यह कर अदा करना चाहिए। यह प्रश्न गणितका हिसाब लगाने और ऐसा सोचनेका नहीं है कि गरीब लोगोंको भी उतना ही देना पड़ेगा जितना कि अमीरोंको। व्यक्ति- कर कभी भी लोकप्रिय नहीं रहा है और इसका बोझ समाजके निर्धनतम लोगोंके लिए बहुत भारी हो जाता है। दक्षिण आफ्रिकाके लिए यह किसी प्रकार कोई नई बात या नया अनुभव नहीं है। ट्रान्सवालमें यह तब भी प्रतिवर्ष वसूल किया जाता था जबकि देश समृद्धिके शिखर- पर पहुंचा हुआ था; हाँ, वसूली में वहाँ बहुत सख्ती नहीं की जाती थी।

आजकल समय मन्दीका है। काम मिलना तो दुर्लभ है ही, नकद-धन और भी दुर्लभ है। इसलिए बाल-बच्चेदार मजदूर-पेशा गरीब आदमीके लिए एक साथ एक पौंडकी रकम भी अदा कर देना कोई छोटी बात नहीं है। स्पष्ट है कि अधिक गरीब वर्गके लोगोंको ही इस करका बोझ अखरता है। हजारों भारतीय ऐसे हैं जिनके लिए एक पौंडकी रकम मामूली बात नहीं है। उदाहरणार्थ, उन लोगोंको लीजिये जो हालमें गिरमिटसे छूटे हैं और जिन्होंने उपनिवेशमें बसनेका फैसला किया है। इस उपनिवेशमें बने रहनेकी अनुमतिके मूल्यके रूपमें उन्हें और उनके बालकोंको प्रति-व्यक्ति तीन पौंडका वार्षिक कर देना ही है; अब उन्हें उसके अतिरिक्त एक पौंड और देनेको कहा जायेगा। स्पष्ट है कि इन लोगोंसे यह रकम वसूल करना भारी अन्याय होगा। बहुत-से छोटे भारतीय किसानोंकी अवस्था भी लगभग ऐसी ही है। उन्हें अपनी रोटी कमानेके लिए रोजाना बहुत समय तक कठोर श्रम करना पड़ता है। उनकी इज्जत बढ़ानेके लिए उन्हें किसान कहना बिल्कुल गलत होगा। क्योंकि वे तो असल में निरे मजदूर है। बहुधा यह दलील दी जाती है कि भारतीय इस उपनिवेशके राजस्वमें काफी हिस्सा नहीं देते। जिन लोगोंने ऐसा कहा है, उन्होंने यह दलील बिना सोचे-समझे दे डाली है। संसारके किसी भी

१. सर आर्थर लाली नवम्बर २४, १९०५ को मद्रासके गवर्नर नियुक्त हुए थे।