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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१८९

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शिष्टमण्डल : लर्ड सेल्बोर्नकी सेवामें

(ग) पुराने ३ पौंडी पंजीयनवाले जो लोग बिना अनुमतिपत्रोंके देशमें आते हैं, वे यद्यपि शरणार्थी हैं, फिर भी उन्हें वापस भेजा जा रहा है और उनसे बाकायदा अजियाँ माँगी जा रही है।

(घ) ट्रान्सवाल निवासियोंकी स्त्रियोंसे भी आशा की जाती है कि वे, यदि अकेली हैं तो, अनुमतिपत्र लें और पंजीयनके लिए ३ पौंडी शुल्क अदा करें - चाहे वे अपने पतियोंके साथ हों चाहे उनके बगैर । (अब इस सम्बन्धमें सरकार और ब्रिटिश भारतीय संघके बीच पत्र-व्यवहार हो रहा है।)

(ङ) सोलह वर्षसे कम आयुके बच्चोंको, यह सिद्ध न कर सकनेपर कि उनके माता- पिता मर गये हैं या वे ट्रान्सवालके निवासी है, वापस भेज दिया जाता है या अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया जाता है। इस तथ्यकी ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता कि उनकी परवरिश शायद ऐसे सम्बन्धी करते हों जो उनके अभिभावक है और जो ट्रान्सवालमें रहते हैं।

(च) गैर-शरणार्थी भारतीयोंको, चाहे वे किसी भी हैसियतके क्यों न हों, उपनिवेशमें प्रवेश नहीं करने दिया जाता। (इस अन्तिम प्रतिबन्धके फलस्वरूप जमेजमाये व्यापारियोंको अत्यन्त असुविधाका सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इसी कारण वे विश्वासपात्र व्यवस्थापकों और मुंशियोंको भारतसे नहीं बुला सकते।)

१८८५ का कानून ३

स्वर्गीया सम्राज्ञीके मन्त्रियोंकी घोषणाओं और नागरिक शासन-व्यवस्था स्थापित करनेके बाद राहत देनेके उनके आश्वासनोंके बावजूद कानूनकी पुस्तकमें यह कानून अभी मौजूद है और पूर्ण रूपसे अमलमें लाया जा रहा है, यद्यपि बहुत-से कानूनोंको जिन्हें ब्रिटिश संविधानके प्रतिकूल समझा गया था, ट्रान्सवालमें ब्रिटिश सत्ताको उद्घोषणा होते ही रद कर दिया गया था। १८८५ का कानून ३ ब्रिटिश भारतीयोंके लिए अपमानजनक है और वह केवल गलतफहमीके कारण ही स्वीकार कर लिया गया था। यह भारतीयोंपर निम्नलिखित पाबन्दियाँ लगाता है:

(क) यह उन्हें नागरिक अधिकारोंके उपभोगसे वंचित करता है।

(ख) यह, उन सड़कों, हलकों या बस्तियोंको छोड़कर जो कि भारतीयोंके रहने-बसनेके लिए अलग छोड़ दी गई हैं, अन्यत्र अचल सम्पत्तिके स्वामित्वपर रोक लगाता है।

(ग) इसका उद्देश्य सार-सफाईके खयालसे बस्तियोंमें भेजकर ब्रिटिश भारतीयोंका अनिवार्य पृथक्करण है। और (घ) यह प्रत्येक भारतीयपर, जो व्यापार या इसी प्रकारके अन्य उद्देश्यसे उपनिवेशमें प्रविष्ट हो, ३ पौंडी कर लागू करता है।

ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे सादर निवेदन किया जाता है कि शान्ति-रक्षा अध्यादेशको इस प्रकार अमलमें लाया जाये कि:

(क) इससे सभी शरणार्थियोंको अविलम्ब प्रवेशकी सुविधा उपलब्ध हो जाये।

(ख) यदि १६ वर्षसे कम आयुके बच्चोंके माता-पिता या अभिभावक उनके साथ हों तो उन्हें हर तरहकी पाबन्दियोंसे मुक्त कर दिया जाये।

(ग) भारतीयोंके परिवारकी स्त्रियोंको प्रवेशाधिकार-सम्बन्धी बाधा या पाबन्दीसे बिलकुल मुक्त रखा जाये। तथा

(घ) अधिवासी व्यापारियोंकी प्रार्थनापर सीमित संख्यामें ऐसे भारतीयोंके लिए भी, जो शरणार्थी नहीं, सेवाके अनुबन्ध कालके लिए अनुमतिपत्र उपलब्ध किया जाये, बशर्ते कि