हम जिम्मेदार अधिकारियोंका ध्यान उन कुछ अध्यादेशोंके मसविदोंकी ओर, जो ऑरेंज रिवर कालोनीके १५ दिसम्बर १९०५ के सरकारी 'गज़ट' में प्रकाशित हुए हैं, और कुछ नगर- विनियमोंकी ओर आकृष्ट करना चाहते हैं। प्रथम अध्यादेशका शीर्षक है, "परवानोंके कानूनोंमें संशोधन करनेके लिए"। इसके अनुसार प्रत्येक रंगदार व्यक्तिको एक नियत अवधि तक अपने पास एक परवाना रखना पड़ेगा जो समय-समयपर फिर नया कराया जा सकेगा। एक और अध्यादेश "ऑरेंज रिवर कालोनीकी सीमाके भीतर या बाहर, काम या मजदूरी करनेके लिए रंग- दार लोगोंकी भरती या नियुक्तिका नियमन और नियन्त्रण करनेके लिए" है। जिस प्रणालीसे अध्यादेशके निर्माता रंगदार मजदूर उपलब्ध कर सकेंगे वह है मजदूर एजेंटोंका परवाना देना । ये एजेंट "रंगदार मजदूर भरती करने, उन्हें दूसरोंको देने और उनकी तलाश करनेके लिए हरकारे या सन्देशवाहक रख सकेंगे।" उन हरकारोंको भी ५ शिलिंगका परवाना लेना होगा। मजदूर एजेंटोंको जो परवाने दिये जायेंगे उन्हें नियमित करनेवाली धाराओंके अतिरिक्त, इस अध्यादेशमें परवानोंका दुरुपयोग अथवा मजदूर एजेंटों द्वारा गलत इस्तेमाल रोकनेके लिए भी साधारण सावधानियां बरती गई है। हमारा खयाल है कि दक्षिण आफ्रिकामें "काफिरोंको काम करनेके लिए राजी करनेको" इस प्रकार मजदूर एजेंट नियत करनेका रिवाज ही पड़ चुका है। कुछ लोग तो इस रिवाजको नरमीसे समझाने-बुझानेका नाम देते हैं, और दूसरे इसे बेगारका सुधरा हुआ रूप बतलाते हैं। जो नीति इतने लम्बे अरसेसे चली आ रही है उसकी आलोचना हम नहीं कर सकते, और वैसा करना हमारे क्षेत्रका विषय भी नहीं है। परन्तु दुर्भाग्यवश, रंगदार व्यक्ति" शब्दोंका जो मतलब ऑरेंज रिवर कालोनीमें समझा जाता है वह है : "वे रंगदार व्यक्ति जो कानून या रीति-रिवाजके अनुसार रंगदार कहलाते हों, या जिनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता हो, फिर उनकी जाति या राष्ट्रीयता चाहे कुछ भी हो।" इसलिए इन शब्दोंमें एशियाई, मलय और दूसरे लोग भी आ जाते हैं। उपर्युक्त दोनों अध्यादेश, उक्त कारणसे, अत्यन्त आपत्तिजनक है। हम समझ नहीं सकते कि इन शब्दोंमें निहित सोचा-समझा अपमान जारी रखकर खीझ क्यों बढ़ाई जाती है। ब्रिटिश भारतीय संघको जवाब देते हुए लॉर्ड सेल्बोर्नने माना है कि ऑरेंज रिवर कालोनीमें बहुत कम एशियाई हैं। इस स्थितिमें यह आपत्तिजनक परिभाषा क्यों कायम रखी जानी चाहिए? यदि व्यवहारमें इसका उपयोग कुछ नहीं है तो इसे जारी रखनेका एकमात्र प्रयोजन ऑरेंज रिवर कॉलोनीके निवासियोंका वह स्वैर आनन्द हो सकता है, जो कि उन्हें एशियाई जातियोंको इस प्रकार अपमानित और पराजित और अपने आपको विजेता मानने में मिलता है। ये वही महानुभाव है जो गणराज्यके जमाने में भारतीयोंके विषयमें यह कहकर खुश हुआ करते थे कि वे अपनी स्त्रियोंको आत्मारहित समझते हैं और उन घिनौनी बीमारियोंके लिए बदनाम है जिनसे वे पीड़ित हैं। क्या मूर्खता तथा अज्ञानपूर्ण पूर्वग्रहकी यह आग सुलगाते रहना अधिकारियोंके लिए उचित है?
हमने ऊपर नगर-नियमोंका भी जिक्र किया है। हम देखते हैं कि डैवेट्सडॉर्प और ब्रैडफोर्ड जैसे सुन्दर नामवाले दोनों नगरोंकी नगरपालिकाओंमें वही पुरानी कहानी दुहराई जा रही है। ये नियम वैसे ही हैं जैसे हमने बहुधा इन स्तम्भोंमें उद्धृत किये हैं। इनकी रचना रंगदार लोगोंका, और यहाँतक कि उनके ढोरों, घोड़ों, खच्चरों और भेड़-बकरियोंका भी आवागमन सदा