करता हूँ कि ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी विधि-संहितामें पहलेसे ही एक ऐसा विशेष कानून है जिसका प्रभाव एशियाइयोंपर, इसलिए ब्रिटिश भारतीयोंपर भी, पड़ता है।
आपका आज्ञाकारी सेवक
अब्दुलगनी
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ
१८९. पत्र: म० ही० नाजरको
[जोहानिसबर्ग]
जनवरी ५,१९०६
मैं हिन्दी और तमिलके सम्पादनके प्रश्नपर छगनलालसे चर्चा करता हूँ। मैं देखता रहा पिल्लेको तो जाना ही होगा। उसकी जगह लेनेवाला कोई है नहीं। मैं जितना सोचता हूँ उतना अधिक यही लगता है कि फिलहाल हमें हिन्दी और तमिल दोनोंको अलग कर देना चाहिये। हम ठीक सामग्री नहीं देते। हम ऐसा करनेकी स्थितिमें ही नहीं है। मैं जानता हूँ कि इसमें बाधाएँ हैं। किन्तु मुझे लगता है, बाधाओंको स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि हिन्दी और तमिल छोड़नेके लाभ भी बहुत होंगे। जब हम ऐसा निश्चित वक्तव्य दे रहे है कि ठीक कार्यकर्ताओंके मिलते ही हम फिरसे हिन्दी और तमिल विभाग शुरू करनेका इरादा करते हैं, तबतक मेरी समझमें डरनेकी कोई बात नहीं है। मैं खुद तमिलके कामके लिए तैयार होनेकी पूरी कोशिश कर रहा हूँ। मगनलाल और गोकुलदास भी यही करेंगे किन्तु उस वक्ततक तो मेरे खयालसे दोनों स्थगित कर देना बहुत जरूरी है। तमिल तो हर हालतमें छोड़नी है, तब हिन्दी भी उसके साथ चली जाये। इस बारे में जितनी जल्दी बने, अपनी राय देनेकी कृपा करें।
आपका शुभचिन्तक,
दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४२९५) से ।