"ब्रिटिश उपनिवेश या अधीनस्थ राज्यमें कमसे कम इतनी उम्मीद तो की ही जाती है कि कानून काफी सोच-विचार और उचित चेतावनीके बाद बनाये जायेंगे । केप और नेटालके स्वशासित उपनिवेशोंमें भी, जब प्रवासी प्रतिबन्धक कानून पास किया गया, तब सम्बन्धित लोगोंको काफी पहले चेतावनियाँ दी गईं और कानून बन जानेके बाद भी वह तुरन्त सख्तीके साथ लागू नहीं किया गया। दोनोंमें जहाजी कम्पनियोंको और उस कानूनसे प्रभावित समाजको कानूनका अमली रूप समझनेका समय दिया । केपके अधिकारियोंने कहीं अब जाकर, अर्थात् पास होनेके दो साल बाद, सूचना दी है कि अब उनका इरादा कानूनपर पूरे तौरसे अमल करनेका है । परन्तु जाहिर है कि ट्रान्सवालमें अधिकारी उतावलीसे काम करनेमें विश्वास रखते हैं । शान्ति-रक्षा अध्यादेश सैनिक कानूनके समयका अवशेष है, इसलिए वह सरकारको स्वच्छन्द सत्ता प्रदान करता है । युद्धकालमें तो ऐसी सत्ताका प्रयोग प्रायः उचित ठहराया जाता है, परन्तु जब ट्रान्सवालमें शान्ति है, तब एक निरापद समाजके विरुद्ध उस अध्यादेशका उक्त पत्रमें वर्णित ढंगसे प्रयोग करना ब्रिटिश संविधानसे सम्बद्ध तरीकोंके अनुकूल नहीं है । उसमें रूसी तरीकोंका आभास मिलता है। खुद नियमोंको कसौटीपर कसा जाये तो वे निस्सन्देह कष्टप्रद हैं। ऐसा लगता है कि बच्चोंकी नाबालिगीकी उम्र एकाएक घटाकर बारह सालसे भी नीचे कर दी गई है और अब आगे वे अनाथ, जिनके रिश्तेदार ट्रान्सवालमें बसे हों, ट्रान्सवालमें बिलकुल प्रवेश न करने पायेंगे। इसके अतिरिक्त नियमोंके अनुसार, किसी शरणार्थीके दावेके समर्थनमें जो गवाह पेश किये जायेंगे उनकी जाँच एक ही अधिकारीसे करानेके बजाय, अब यह अधिकार विभिन्न जिलोंके मजिस्ट्रेटोंको हस्तान्तरित कर दिया गया है। जाँचकी कार्रवाई पूरी हो जानेके बाद भी, अनुमतिपत्र प्राप्त करनेके मामूली कामके लिए, सब शरणार्थियोंको प्रिटोरिया जाना होगा। अभी उस दिन परमश्रेष्ठ लॉर्ड सेल्बोर्नने भारतीय शिष्टमण्डलसे कहा था कि सभी प्रतिबन्धात्मक कानून उचित होने चाहिए। वे तभी स्वीकार करने योग्य और प्रभावकारी हो सकते हैं । जैसे ये कानून हैं वैसे कानून क्या कभी उचित माने जा सकते हैं, भले ही हम कितनी ही खींचतान क्यों न करें ?
इंडियन ओपिनियन, १७-२-१९०६
२०८. जोहानिसबर्गकी ट्रामें और भारतीय
अन्यत्र वह पत्र[१]छापा जा रहा है जो ब्रिटिश भारतीय संघ, जोहानिसबर्गके अध्यक्षने टाउन क्लार्क, जोहानिसबर्गको लिखा है । वह रंगदार लोगों द्वारा बिजलीसे चलनेवाली ट्रामोंका उपयोग करनेके सम्बन्धमें प्रस्तावित विनियमोंके विषयमें है । हमें श्री अब्दुल गनीकी दलीलका समर्थन करनेमें कोई हिचकिचाहट नहीं है। महाप्रबन्धकने जो सिफारिशें की हैं वे बिलकुल मनमानी हैं, और इस बातसे कि उन्हें अस्थायी रूपसे वापस ले लिया गया है, भारतीयोंको सुरक्षाकी झूठी भावनामें पड़कर शिथिल नहीं हो जाना चाहिए। वे इसलिए नहीं वापस ले ली गई हैं कि नगर परिषदको जनरल मैनेजरकी अपेक्षा भारतीयोंका अधिक लिहाज है, बल्कि इसलिए कि, जैसा कहा जाता है, अभी उनके लिए समय ही उपयुक्त नहीं है- क्योंकि अभी कुछ समय तक ट्रामें चलेंगी ही नहीं । जोहानिसबर्ग या अन्य स्थानोंमें सार्वजनिक ट्रामोंके उप-
- ↑ १. देखिए "पत्र : टाउन क्लार्कको", पृ४ १९४-५।