होगा, प्रतिनिधित्व-हीनताका परिणाम नेटालमें बहुत प्रतिकूल हुआ है। यदि भावी संविधान में भारतीयोंका ध्यान न रखा गया तो उक्त दोनों उपनिवेशोंमें भारतीयोंके साथ कभी भी न्याय होनेकी आशा समाप्त हो जायेगी। ट्रान्सवालमें भारतीय हितोंके विरुद्ध आन्दोलनकी लहर चल रही है। ऑरेंज रिवर कालोनीके द्वार भारतीयोंके लिए बिलकुल बन्द ही कर दिये गये हैं और यदि उनके बारेमें कानून बनानेका अधिकार इन उपनिवेशोंके उत्तरदायी विधायकोंको सौंप दिया जायेगा तो आज भारतीयोंको जिन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ रहा है, वे और भी बढ़ जायेंगी। दोनोंके संविधानोंमें परम्परागत निषेधाधिकार तथा गैर-यूरोपीय जातियोंके लिए विशेष धाराके रूपमें संरक्षण होंगे, परन्तु अमलमें ये संरक्षण बहुत ही अप्रभावकारी सिद्ध हुए हैं, क्योंकि ब्रिटिश मन्त्रियोंने महामहिम सम्राट्को निषेधाधिकारका प्रयोग करनेकी सलाह देनेमें सदैव अनिच्छाका अनुभव किया है। ऐसी परिस्थितिमें, अगर भारतीयोंको अन्य जातियोंके समान ही साम्राज्यका महत्त्वपूर्ण अंग समझना है तो, हमारी समझसे यह निहायत ही जरूरी है कि, उनके तथा अन्य दुर्बल जातियोंके हकोंकी हिफाजत खास तौरपर की जाये।
इंडियन ओपिनियन, २४-२-१९०६
२१६. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय
ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति किसी तरह ईर्ष्या-योग्य नहीं है। वे चारों ओरसे अत्यन्त अपमानजनक प्रतिबन्धोंसे घेरे जा रहे हैं। अगर कोई भारतीय ट्रान्सवालका स्थायी निवासी है। और इस देशमें पुनः प्रवेश करना चाहता है तो उसको हर कदमपर निराशाका सामना करना पड़ता है और वह अपना दावा उसी हालत में साबित कर सकता है जब उसके पास धीरज और धनका बाहुल्य हो। इस देशमें निवासका अनुमतिपत्र प्राप्त करनेसे पूर्व उसको मारा-मारा फिरना पड़ता है। उसको गहरी जाँच-पड़तालमें से गुजरना होता है और उसकी बातकी कोई कीमत नहीं मानी जाती। इसलिए ट्रान्सवालकी पवित्र भूमिपर पाँव रखनेसे पूर्व उसको अपनी बात गवाहोंके बयानों और कागजोंके सबूतोंसे पुष्ट करनी होती है। अगर संयोगसे उसकी पत्नी उसके साथ है, तो उसे साबित करना पड़ता है कि वह उसका पति है। अगर उसके बच्चे उसके साथ हैं तो, चाहे जितने छोटे क्यों न हों, उनके अलग अनुमतिपत्र लेने होंगे और साबित करना पड़ेगा कि वह उनका पिता है। अगर उसके बच्चे बारह सालसे कम उम्र के नहीं हैं तो वे किसी हालतमें भी उसके साथ नहीं आ सकते। ये वे प्रारम्भिक झंझटें हैं जिनमें होकर ट्रान्सवालमें पुनः प्रवेश करनेसे पूर्व प्रत्येक भारतीयको गुजरना पड़ता है — उस ट्रान्सवालमें, जो अब उसका अपना देश बन गया है। और इस देश में पहुँचकर वह क्या देखता है?
बिजलीकी ट्रामोंके बारेमें जोहानिसबर्ग नगर परिषदकी बैठकके विवरणसे स्पष्ट मालूम पड़ जाता है कि उसको किस स्थितिका सामना करना है। अगर वह किसी गोरे मालिकका नौकर है तब तो उसको ट्रामोंका उपयोग करने दिया जायेगा, अन्यथा उसे सामान्य गाड़ियों तक का उपयोग नहीं करने दिया जायेगा। नगर परिषदकी बैठकमें दिये गये भाषण पढ़ने में तो बहुत अच्छे लगते हैं, परन्तु वे हैं बहुत दुःखद। यात्राकी सीधी-सादी सहूलियतके मामलेमें, कई