वापस भेजने का हुक्म दिया है। इस परिस्थितिके कारण खानोंके मालिक घबरा गये हैं और उन्होंने अपनी थैलियोंके मुँह सिकोड़ लिये हैं। इससे व्यापार भी मन्द हो गया है। इसके साथ ही नेटालके काफिरोंकी बगावतका असर यहाँके काफिरोंपर पड़ा है। इससे किसी भी तरफ सहूलियत[१] नहीं रही।
उपनिवेश-सचिवकी सेवामें शिष्टमण्डल
भारतीयोंके अनुमतिपत्रों के बारेमें एक शिष्टमण्डल उपनिवेश सचिव के पास जानेवाला है। धारणा है कि कुछ राहत तो मिलेगी ही। सम्भव है कि अनुमतिपत्रं वगैरह देनेके लिए कोई अधिकारी एक बार जोहानिसबर्ग आयेगा।
एशियाइयोंके संरक्षक श्री चैमने आ पहुँचे हैं, और उन्होंने अपना पद संभाल लिया है।
लेफ्टिनेंट गवर्नरने मलायी बस्तीके बारेमें शिष्टमण्डलसे मिलना स्वीकार किया है। कुछ दिनोंमें मिलेंगे।
लॉर्ड सेल्बोर्न
लॉर्ड सेल्बोर्न मसेरूसे वापस लौट आये हैं। उनसे मिलनेके लिए मसेरू में लगभग २०,००० बसूटो काफिर इकट्ठे हुए थे। ये काफिर बहुत होशियार हैं। इनकी अपनी संसद है, जो 'पीटसो' कहलाती है। पीटसोका शीघ्रलिपिक (शॉर्टहैंड रिपोर्टर) एक बसूटो है। लॉर्ड सेल्बोर्नने जो भाषण किया था, उसका विवरण उस काफिर लिपिकने तैयार किया था।
'इंडियन ओपिनियन, १०-३-१९०६
२३०. पत्र : छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
रविवार, [मार्च ४, १९०६]
अपने कर्तव्यमें जरा भी मत चूकना। बहीखातोंकी स्थिति ठीक रखनेकी पूरी जरूरत है। सिलक वगैरह निकलनी चाहिए। चिट्ठी-पत्रमें श्री बीनकी मदद लो। गुजरातीमें हेमचन्दको लगा दो। हेमचन्दको डर्बनमें रखना बिलकुल जरूरी नहीं है। कल्याणदासको अभी तुरन्त नहीं भेज सकता। ब्रायन गैब्रियल बहुत करके आयेगा। जो वैसा हो जाये, तो ठीक है। हमें आदमियोंकी कुछ कमी रहती है, वह मिटेगी। तुम्हारा बोझा किस तरह हलका किया जाये, सो तुम्हीं अधिक जान सकोगे। डर्बन केवल एक ही दिन जाओ तो भी फिलहाल काफी है। मुख्य काम वसूलीका है।
गुजराती सम्पादन जैसा अंग्रेजीमें है, वैसा रखना चाहिए। सम्पादकीय, अर्थात् अग्रलेख, पहले, उसके बाद छोटी-छोटी सम्पादकीय टिप्पणियाँ। इसके बाद बड़े विषयोंके अनुवाद आदि। बाद में जोहानिसबर्गकी चिट्ठी और दूसरे पत्र और अन्तमें रायटरके तार।
- ↑ व्यापारको पुनरुज्जीवित करनेके लिए। देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ २१५-६।