वहाँ प्रफुल्लित रहेगा या नहीं, इसमें भी शंका है। फिर भी यदि बने तो जाड़ेके दिनोंमें भेजूंगा, वह भी थोड़ी मुद्दतके लिए।
'ओपिनियन' की फाइल भेजना। श्री आइजकका उपयोग खूब करना।
मोहनदासके आशीर्वाद
चिट्ठियाँ मिल गई हैं। उनमें से कुछ छापने योग्य नहीं है। दोनों पटेलोंको नीचेके अनुसार लिख देना। "आपका पत्र मिला। ऐसी सामग्री बहुत आती है। उसे 'ओपिनियन' में छापनेकी जरूरत नहीं जान पड़ती। उससे एक दूसरेके विरोधमें लिखा-पढ़ी चलती है और क्लेश बढ़ता है। 'ओपिनियन' मुख्यतः राजनीतिक और सामाजिक प्रश्नोंकी चर्चासे सम्बन्धित पत्र है। इसलिए ज्यादा धर्म सम्बन्धी विषय दाखिल करना अनुचित मालूम होता है।" उन्हें ऐसा पत्र बालाबाला लिख देना। इस बाबत उन्हें अखबार में जवाब देना जरूरी नहीं है। उस्मान आमदको लिखना कि मैंने सीधे उन्हें पत्र लिखा है।
साथमें नया नाम है। उसका पैसा नहीं आया।
मोहनदास
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३२०) से।
२३७. पत्र: उपनिवेश-सचिवको
[डर्बन
मार्च १०, १९०६ से पहले]
उपनिवेश-सचिव
नेटाल भारतीय कांग्रेसकी समितिको गत मासकी २७ तारीखके 'नेटाल गवर्नमेंट गज़ट' में प्रकाशित उस सरकारी सूचना संख्या १५० को पढ़कर बहुत व्यथा और चिन्ता हुई है जिसके अनुसार १९०६ के कानून ३ द्वारा संशोधित १९०३ के प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम संख्या ३० के अन्तर्गत जारी पासों और प्रमाणपत्रोंके सम्बन्धमें विभिन्न शुल्क लगाये गये हैं।
हमारी समिति सूचनामें दी गई शुल्क सूचीके विरुद्ध सादर, किन्तु तीव्र विरोध प्रकट करती है।
निवेदन है कि यह शुल्क उन ब्रिटिश भारतीयोंपर करके समान है जिनको इस उपनिवेशमें रहने या इसमें होकर गुजरनेका अधिकार है।
सुविदित है कि यह कानून पूरी तरहसे नहीं तो बहुत-कुछ ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध लागू किया गया है। उसके अन्तर्गत विभिन्न पास और प्रमाणपत्र देनेमें उन लोगों के हितका उतना खयाल नहीं रखा जाता जो उसकी धाराओंसे प्रभावित होते हैं; बल्कि उन्हींका ज्यादा खयाल रखा जाता है जिनको उनका अमलमें लाया जाना अभीष्ट है।