२५२. सर विलियम गैटेकर
हमें यह लिखते हुए दुःख होता है कि मिस्रमें लू लगनेके कारण मेजर जनरल सर विलियम गैटेकरकी मृत्यु हो गई है। सर विलियमका भारतीयोंकी कृतज्ञतापर एक खास हक था। वे बम्बई में बनाई गई प्रथम प्लेग-समितिके अध्यक्ष थे। उन्होंने कठिनसे कठिन मामलों में कौशल और सावधानीसे काम लिया, जिससे सारा संघर्ष और कड़वाहट टल गई। आंग्ल-भारतीय चरित्रमें जो कुछ उत्तम है और जिसका प्रतिनिधित्व माउंटस्टुअर्ट एलफिन्स्टन, मनरो, टॉड, स्लीमन, फॉर्ब्स, लॉरेंस तथा ब्रिटिश शासनके अन्य अनेक उत्साही और शिष्ट व्याख्याता करते हैं, उसके वे अनुपम उदाहरण थे। जबतक ब्रिटेन स्वर्गीय सर विलियमके मादेके उदात्त महापुरुषोंको जन्म दे सकता है, तबतक यह आशा शेष है कि भारत अपने शासकोंसे वह सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, जिसकी उसे आवश्यकता है, प्राप्त करेगा।
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६
२५३. आस्ट्रेलियामें बस्तीकी कमी
आस्ट्रेलियाके गोरे उस टापूपर उतरनेवाले किसी भी व्यक्तिसे ईर्ष्या करते हैं। वे अपने जाति-भाइयोंको भी नहीं आने देते। काले लोगोंके तो वे शत्रु हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उत्तरी हिस्से में केवल ८२० गोरे आबाद हैं। अर्थात् प्रति ७०० मीलपर एक गोरेकी बस्ती हुई। आदमी जमीनको बटोरकर तो नहीं रख सकता। अगर लोग पर्याप्त संख्यामें न हों। तो जमीन उजाड़ पड़ी रहती है, यानी उसे निकम्मी दौलत कहना होगा। इस कारण आस्ट्रेलियाके लोग अब जागने लगे हैं। राष्ट्रपति रूजवेल्टने[१] आस्ट्रेलियाके लोगोंको लिखा है कि उनके देशको खाली रखनेसे नुकसान होगा। संसद सदस्य श्री रिचर्ड आर्थरने कहा है कि आस्ट्रेलिया और एशिया एक दूसरेके पड़ोसी हैं, इसलिए आस्ट्रेलियामें एशियाके लोगोंको जगह दी जानी चाहिए। ये विचार फैलने लगे हैं। इस बातसे यह अनुमान किया जा सकता है कि धीरे-धीरे ऐसे देशों में भारतीय जाकर बस सकेंगे।
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६
- ↑ थियोडोर रूजवेल्ट (१८५८-१९१९), अमेरिकाके गणतंत्रीय राष्ट्रपति, १९०१-९।