२५४. ट्रान्सवालके भारतीयोंपर निर्योग्यताएँ[१]
उपनिवेश सचिवसे शिष्टमण्डलको भेंट
पिछले शनिवार १० तारीखको एक भारतीय शिष्टमण्डल सहायक उपनिवेश-सचिवसे मिलने के लिए गया था। उसके सदस्य श्री अब्दुल गनी, श्री हाजी हबीब और श्री गांधी थे। श्री चैमने और श्री बर्जेस मौजूद थे। शिष्टमण्डलकी बातचीत सवा ग्यारहसे एक बजे तक चली। उसमें उसने नीचे लिखी मांगें की थीं :
२. जाँचके लिए अर्जियाँ मजिस्ट्रेटके पास भेजी जाती हैं। इससे बहुत तकलीफ होती है। जाँच होती नहीं और अर्जियां पड़ी रहती हैं।
३. वास्तवमें अलग-अलग गाँवोंमें पहुँचकर एक ही अधिकारीको जाँच करनी चाहिए, जिससे एक-सी जाँच हो, और जल्दी निर्णय हो। गाँवके लोगोंको उज्र करना हो तो वे खुशीसे करें। लेकिन फैसला तुरन्त होना चाहिए।
४. जिनके पास पुराने प्रमाणपत्र हों उनके लिए गवाहोंकी जरूरत नहीं रहनी चाहिए; प्रमाणपत्रकी जानकारी देते ही उन्हें फौरन अनुमतिपत्र मिलना चाहिए।
५. औरतोंके लिए अनुमतिपत्रकी कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। औरतें तो गोरोंके साथ कोई होड़ नहीं करतीं। और उनकी जाँच करना तो उनका घोर अपमान करने-जैसा है। भारतीय औरतें ट्रान्सवालमें बहुत कम हैं, और वे सब अपने मर्दोंके साथ हैं, इसलिए इस सम्बन्धमें शक नहीं करना चाहिए।
६. सरहदपर अनुमतिपत्र और प्रमाणपत्र दोनों माँगे जाते हैं। यह जुल्म कहा जायेगा। जिसके पास अनुमतिपत्र हो, उसे तुरन्त निकल जाने देना चाहिए। इसी तरह जो प्रमाणपत्र दिखाये उसे भी जाने देना चाहिए।
७. सरहृदपर अनुमतिपत्रवालोंसे अँगूठेके निशान लिये जाते हैं। यह व्यर्थका अपमान कहा जायेगा।
८. कानून बना है कि बारह सालसे कम उम्र के लड़के भी उसी हालतमें आ सकेंगे, जब उनके माँ-बाप ट्रान्सवालमें हों। यह कानून अत्याचारपूर्ण माना जायेगा। शुरूसे ही १६ सालसे कम उम्र के लड़के आते रहे हैं, इसलिए उन्हें आने देना चाहिए। अगर इसमें कोई परिवर्तन करना हो तो भी जो लड़के इस कानूनके अनुसार आ ही पहुँचे हैं। उन्हें तो किसी अड़चनके बिना अनुमतिपत्र मिलना ही चाहिए। नये कानूनकी सूचना काफी समय पहले देनेकी जरूरत है। जिसके माँ-बाप मर गये हों, उसके रिश्तेदारोंको ही अभिभावक मानना चाहिए।
- ↑ यह लेख "विशेष रूपसे प्रेषित" रूपमें छपा था।