१०. मुद्दती अनुमतिपत्र तो माँगते ही मिल जाने चाहिए। लोगोंको काम-काजके सिलसिलेमें जाने-आनेकी पूरी छूट जरूरी है।
११. जोहानिसबर्ग में अनुमतिपत्र देनेके लिए हर हफ्ते एक बार किसी अधिकारीको आना चाहिए। लोगोंको जहाँतक हो सके उतनी कम तकलीफ होनी चाहिए। बहुतेरे लोगोंको अनुमतिपत्रोंके लिए ही प्रिटोरिया जानेकी आवश्यकता पड़ती है।
१२. रेलवेमें जोहानिसबर्ग या प्रिटोरियासे [भारतीयोंको] सुबह ८।। वजेकी गाड़ीके टिकट देना बन्द हो गया है। यह बहुत अनुचित बात है। विश्वास है कि इसकी सुनवाई तुरन्त होगी।
१३. रेलगाड़ीके एक ही डिब्बेमें औरत-मर्द दोनोंको बैठाया जाता है और बहुत लोगोंको भर दिया जाता है, इसे तो सरासर बुरा माना जायेगा।
१४. प्रिटोरियाकी ट्रामके बारेमें श्री मूअरने कहा था कि खुलासा किया जायेगा। अब उसमें फेरफार करनेकी जरूरत है। अखीरकी एक या दो बेंचोंपर भारतीय बैठें, तो गोरोंको उसपर कोई एतराज नहीं करना चाहिए।
१५. जोहानिसबर्ग में परीक्षात्मक मुकदमा चलाया गया है। उसमें सफलता न मिले तब भी ट्राममें बैठनेका अधिकार तो मिलना ही चाहिए।[१]
इन बातोंका जवाब देते हुए श्री कर्टिसने[२] कहा कि सारी बातें मैं श्री डंकनके सामने रखूंगा। मैं अभीसे कोई फैसला नहीं दे सकता। सरकार भारतीयोंको तकलीफ देना नहीं चाहती। जैसे भी बनेगा, राहत पहुँचाई जायेगी। बहुत करके मजिस्ट्रेटोंसे कहा जायेगा कि वे १५ दिनमें शरणार्थियोंकी अर्जियाँ जाँच लिया करें। इस बीच न जांचें, तो संरक्षक (प्रोटेक्टर) फैसला दे देगा। हम मानते हैं कि औरतोंको भी तीन पौंड देने चाहिए।
इसके जवाबमें शिष्टमण्डलने कहा कि अगर औरतोंके बारेमें सरकारका यह खयाल है, तो हम मुकदमा लड़नेको तैयार हैं।
श्री कर्टिसने कहा कि अगर दसों अँगुलियोंकी निशानी अनुमतिपत्रपर दी जाये तो बहुत सुविधा होगी।
शिष्टमण्डलने इसे माननेसे साफ इनकार किया। आखिर श्री कटिसने कहा कि सारी बातोंका खुलासा यथासम्भव शीघ्र ही किया जायेगा। इसके बाद शिष्टमण्डल आभार मानकर विदा हुआ।
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६