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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/२८४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सुने गये मुकदमेका अहवाल देख सकेंगे। 'ओपिनियन' में मुकदमेका पूरा विवरण और उसपर टिप्पणियाँ दी गई हैं।

इन दोनोंपर तत्काल ध्यान देना आवश्यक है।

आपका विश्वस्त,
मो° क° गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (जी° एन° २२७१) से।

 

२५७. नेटालका शीघ्र दुकानबन्दी अधिनियम

शीघ्र दुकानबन्दी अधिनियमका असर अब महसूस होने लगा है। हमारा कभी यह मत नहीं रहा कि शीघ्र दूकानवन्दी अधिनियम किसी भी परिस्थितिमें उपयुक्त नहीं होगा। इसके प्रतिकूल हमारी धारणा है कि एक सुचिन्तित कानून समाजके लिए सदैव बड़ा लाभप्रद होगा; किन्तु वर्तमान अधिनियम उपभोक्ताओं अथवा छोटे फुटकर विक्रेताओंकी सुविधाका पर्याप्त विचार किये बिना बनाया गया है। नतीजा यह हुआ है कि गरीब गृहस्थोंको बड़ी असुविधा हो गई। है और छोटे व्यापारियोंको बहुत बड़ी क्षति पहुँची है। सम्भवतः इससे केवल उन लोगोंको लाभ पहुँच सकता है, जो बड़े फुटकर विक्रेता हैं। हम 'नेटाल मर्क्युरी' के प्रतिनिधिके इस कथनसे पूरे सहमत हैं :

बड़े व्यापारी धीरे-धीरे छोटे व्यापारियोंको निगलते जा रहे हैं और इन बड़े व्यापारियोंकी तादाद अँगुलियोंपर गिनी जा सकती है। वास्तवमें यदि इस प्रकारके कानूनसे भले उपनिवेशियोंको एक ओर ढकेल कर उन्हें ईमानदारीके साथ जीविकोपार्जनसे वंचित कर दिया गया, तो यह एक दुर्भाग्यकी बात होगी।

इसके लिए जो प्रतिकार सुझाया गया है वह है अधिनियमको स्थगित करना। अनुभवसे यह ज्ञात हुआ है कि दुकानोंको साढ़े पाँचके बादतक खुला रहने देना चाहिए और शनिवारको दूकान बन्द करना एक भयानक भूल है। इस मामलेमें 'नेटाल विटनेस' ने जो रुख ग्रहण किया है उसे एक तरहसे विद्वेषपूर्ण ही कहा जा सकता है। वह यह कहकर इस विषयपर अपना मन्तव्य समाप्त करता है :

यह एक सुविदित तथ्य है कि नगरके अरब और भारतीय दुकानदारोंको बहुत हानि पहुँची है। यूरोपीय इसे भली-भाँति याद रखें।

हमारा सहयोगी यूरोपीयोंसे अनुरोध करता है कि वे सिर्फ इस बिनापर इस अधिनियम के खिलाफ आन्दोलन न करें कि इसका भारतीय व्यापारपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भारतीयोंको क्षतिग्रस्त देखनेकी जल्दीमें 'विटनेस' यह बात पूर्णतः भूल गया है कि भारतीयोंको क्षति पहुँचाने में उन छोटे-छोटे गोरे व्यापारियोंको, अकेले जिन्हें ही भारतीय प्रतियोगिता महसूस हो सकती है, न केवल हानि पहुँचेगी बल्कि वे पूर्णतः मिट जायेंगे, क्योंकि भारतीयोंका मितव्ययी स्वभाव उन्हें तो मुसीबतसे किसी प्रकार बचा सकता है पर छोटे गोरे व्यापारी, जो बचत करनेकी असमर्थताके लिए बुरी तरह प्रसिद्ध हैं, सर्वथा असहाय हो जायेंगे।