२६७ भारतीय स्वयंसेवक
हाल ही में नागरिक सेनाके बारेमें जो सभा हुई थी, उसमें भाषण करते हुए प्रतिरक्षा मन्त्री श्री वॉट ने "अपना बाँध तोड़ दिया" है। उनसे यह प्रश्न किया गया था :
हमें बताया गया है कि श्री वॉटने इसका जो उत्तर दिया उसपर हर्ष ध्वनि की गई। बताया जाता है कि उन्होंने कहा :
इसके बाद उनसे एक और प्रश्न पूछा गया :
श्री वॉटका उत्तर पहले उत्तरसे मेल खाता हुआ ही था :
हमें सन्देह नहीं है कि श्री वॉट प्रतिरक्षा मन्त्रीकी हैसियतसे यह जानते हैं कि युद्धमें खाइयाँ खोदना भी उतना ही जरूरी है जितना बन्दूक उठाना। फिर यदि वे अपने और अपने कुटुम्बकी सुरक्षाके लिए अरबोंपर निर्भर रहना नहीं चाहते तो वे उनसे खाइयाँ खुदवाना क्यों चाहते हैं? स्वर्गीय श्री हैरी एस्कम्बके अनुसार, जो प्रतिरक्षामंत्री ही थे, दोनों काम एक जैसे सम्मानपूर्ण हैं। चाहे श्री वॉट, पुनर्विचारके पश्चात्, अरबों अथवा भारतीयोंसे अपनी अथवा उपनिवेशकी रक्षाका काम खाइयाँ खुदवानेके रूपमें या किसी अन्य रूपमें करवाना पसन्द करें या न करें, उनसे वे तबतक युद्ध-सम्बन्धी काम लेनेकी आशा कैसे कर सकते हैं जबतक उनको पहलेसे उसका प्रशिक्षण न दें? सेनाके असैनिक शिविर अनुचरोंमें भी उचित अनुशासनकी आवश्यकता होती है, अन्यथा वे मददगार होने के बजाय एक निश्चित मुसीबत बन जाते हैं। लेकिन एक ऐसे मन्त्रीसे हमें सामान्य विवेक अथवा न्यायसे काम लेनेकी आशा नहीं हो सकती जो अपने-आपको इतना भूल जाता है। कि निर्दोष लोगोंके पूरे समाजको व्यर्थ ही अपमानित कर बैठता है।