२७९. पत्र : छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
अप्रैल ६, १९०६
तुम्हारी चिट्ठी मिली। क्या तुम्हारी चिट्ठीका यह अर्थ निकालूँ कि मेरी भेजी हुई गुजराती सामग्री तुम्हें बुधवारको जाकर मिली? अगर ऐसा हो तब तो कहीं कोई बहुत बड़ी गड़बड़ी है; क्योंकि मैंने इसका बहुत खास प्रबन्ध किया था कि इतवारको लिखी हुई सामग्री चार बजेसे पहले डाकमें छोड़ दी जाये। शनिवारको लिखी गई सामग्री समयपर रवाना की गई थी। मैंने तुमसे तारीखकी मोहरवाले लिफाफे भेजनेको कहा था; ताकि बातकी यहाँ जाँच-पड़ताल कराई जा सके। पूरे पृष्ठ, आधे पृष्ठ और चौथाई पृष्ठके विज्ञापनोंकी दरें देनेमें दिक्कत क्यों होनी चाहिए? मेरी समझमें ये दरें कितना टाइप लगता है, इसपर तो निर्भर नहीं करतीं। कोई व्यक्ति निश्चित स्थानका पैसा देता है तो फिर हमें चाहिए कि हम जहाँतक बने, उतनी ही जगहमें उसकी जरूरतकी सब बातें दे दें। ऐसी स्थितिमें जगहकी दरें देना कठिन नहीं होना चाहिए। तुमसे दरें मिलते ही केप टाउनसे खासा विज्ञापन मिलनेकी संभावना है। इसलिए इसमें देरी मत करना।
श्रीमती मैकडॉनल्डके बारेमें तुम्हारे निर्णयकी राह उत्सुकतासे देख रहा हूँ।
मगनलाल अच्छा हो रहा है, जानकर खुशी हुई। उसे अपनी शक्तिसे अधिक काम नहीं करना चाहिए। इसलिए अगर उसे बहुत कमजोरी लगे तो अभी और एक-दो दिन काम न करे; क्योंकि अगर फिर पटकनी खा गया तो उसकी तबीयत पहलेसे भी ज्यादा खराब हो जायेगी और उसको कमजोरीका अनुभव होगा।
मैंने तुम्हें बता ही दिया है कि श्री भायातका पत्र प्रकाशित मत करना। पिछले हफ्ते मैंने वह पत्र यह लिखकर वापस कर दिया था कि इसे छापना नहीं है। श्री भायातका जो पत्र तुमने मुझे भेजा है, मैं उसे अब नष्ट कर रहा हूँ।
कुछ ध्यानमें नहीं आता, आर° के° नायडू कौन हैं। लॉरेंसकी मारफत यह पैसा पानेका प्रयत्न करो। मैंने यह तो तुमसे कह ही दिया है कि जो लोग पैसा चुकाने में लगातार लापरवाही कर रहे हैं, तुम उन्हें अपनी मर्जीसे तकाजेके पत्र भेज सकते हो।
तुम्हारा शुभचिंतक,
मो° क° गांधी
मारफत इंडियन ओपिनियन
फीनिक्स
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३४५ ) से।