१. नेटालके विधेयक
नेटाल सरकारके २१ जूनके खास 'गजट'में चार विधेयक प्रकाशित किये गये हैं। वे सभी थोड़े या बहुत आपत्तिजनक हैं। पहला विधेयक उन कानूनों में संशोधन करने के लिए रखा गया है जो कि जूलूलैंड प्रान्तमें शराबके परवाने और दूसरे परवानोंसे सम्बन्धित है। यह विधेयक अधिकतर ब्रिटिश भारतीयोंको लक्ष्यमें रखकर बनाया गया है। इसके अनुसार प्रत्येक फेरीवालेको प्रतिमास परवाना लेना पड़ेगा; और यह उन फेरीवालोंपर भी लागू होगा जो आयातित माल नहीं बेचते, यद्यपि ऐसा माल बेचनेके परवानेका कोई शुल्क नहीं देना पड़ता। जो फेरीवाला आयातित माल बेचनेका परवाना लेगा उसे प्रतिमास १ पौंड शुल्क देना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त १८९७ के कानून १८ के अनुसार परवाने तबतक नहीं दिये जायेंगे जबतक कि उपनिवेश-सचिव उनकी मंजूरी न दे दे। इस सम्बन्धमें उनका निर्णय सर्वथा अन्तिम होगा, और "उनके निर्णयके खिलाफ किसी भी अदालतमें या उच्चाधिकारीके सामने अपील नहीं की जा सकेगी।
दूसरा विधेयक भी ब्रिटिश भारतीयोंसे सम्बन्धित है। इसके द्वारा अनधिकृत देहाती जमीनोंपर कर लगाया जायेगा। यह उसी विधेयककी नकल है जिसपर हम पहले विचार कर चुके हैं। इसके अनुसार वह जमीन जिसपर स्वयं उसका मालिक या कोई यूरोपीय, प्रत्येक वर्ष में जनवरीसे दिसम्बर तक के बारह महीनोंमें से कमसे-कम दो महीने लगातार नहीं रहा है, अनधिकृत मानी जायेगी।
तीसरे विधेयकका उद्देश्य निजी बस्तियों में भी परवानोंकी व्यवस्था करना है। इसमें 'निजी बस्ती' की व्याख्या की गई है : "किसी निजी जमीनपर अथवा बिकती हुई सरकारी जमीनपर बनी कितनी भी झोंपड़ियाँ या मकान जिनमें वतनी या एशियाई रहते हों।" इस प्रकार जमीनका प्रत्येक टुकड़ा, जिसपर भारतीयोंका अधिकार होगा, कलमकी एक रगड़से 'निजी बस्ती' में बदल दिया जायेगा, और उस स्थानके मालिकको एक परवाना लेना पड़ेगा और उसके लिए १० शिलिंग प्रति झोंपड़ी या मकान प्रतिवर्ष देने होंगे। जिन झोपड़ियोंमें एशियाई या वतनी कर्मचारी रहते होंगे उनका कोई परवाना-शुल्क नहीं लिया जायेगा। इसका शुद्ध परिणाम यह होगा कि ऐसे प्रत्येक कमरेपर, जो खुद मालिक या मालिकके नौकरके अलावा, किसी अन्य भारतीयके अधिकारमें होगा, १० शिलिंग सालाना कर लग जायेगा -फिर उस अपमानका तो कुछ कहना ही नहीं जो कि एशियाइयोंके निवास स्थानोंको 'बस्ती' के नामसे पुकारनेमें निहित है।
चौथा विधेयक आबाद रिहायशी मकानोंपर कर लगानेके सम्बन्धमें है। यह सबपर लागू होगा। शायद विधेयकके निर्माताओंका ध्यान विधेयकका मसविदा बनाते समय ब्रिटिश भारतीयों- पर बिलकुल नहीं था; फिर भी, अन्तमें इसका प्रभाव अन्य किसी जातिकी अपेक्षा उनपर कहीं अधिक पड़ेगा। इसमें, ७५० पौंडसे कम मूल्यके प्रत्येक मकानपर १ पौंड १० शिलिंग कर लगानेका प्रस्ताव है। यह कर ४,००० पौंडसे अधिक कीमतके रिहायशी मकानोपर बढ़कर २० पौंड हो जाता है। और 'रिहायशी मकान' का अर्थ है ऐसा कोई भी मकान या मकानका भाग जो रहने के काम आता हो - इसमें घरेलू नौकर-चाकरोंके कमरे, अस्तबल, कोठियोंके बाहर अहातोंमें बने कमरे, और अन्य वे सब तामीरात शामिल हैं जो रिहायशी
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