२९०. पत्र : छगनलाल गांधीको
२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक व ऐंडर्सन स्ट्रीट्स
पो° ऑ° बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
अप्रैल ११, १९०६
तुम्हारी चिट्ठी मिली। जवाबमें बहुत नहीं लिख रहा हूँ। मैं शुक्रवारको सवेरेकी गाड़ीसे रवाना हो रहा हूँ। शनिवारकी दुपहरको वह मुझे वहाँ[१] पहुँचा देगी। फीनिक्सके लिए जोहानिसबर्गकी गाड़ीके आनेके बाद जो गाड़ी छूटती है उसीको पकड़ लूंगा।
लगता है, विज्ञापनकी दरोंके बारेमें तुमसे जो पूछा था वह तुम अभीतक ठीकसे नहीं समझे हो। जब मैं वहाँ पहुँचूँ तो याद दिलाना; मैं तुम्हें परिस्थिति समझा दूंगा। इसी बीच तुम अपने विचार लिखकर रख छोड़ो — जो तुम्हें कहना है और जो तुम सुझाना चाहो, वह सब। गलतफहमीका कोई डर न रखो, क्योंकि तुम जो कुछ लिख रखोगे मैं उस सबके विषयमें प्रश्न कर सकूँगा और तुम सब समझाकर कह सकोगे। मैं यह भी चाहता हूँ कि स्वतन्त्र रूपसे, बिना दूसरेसे सलाह-मशविरा किये तुम अपने विचार लिख डालो, और मेरा मंशा है कि सबसे ऐसा ही करनेको कहूँ। यह पत्र मगनलालको दे देना; ताकि अगर वह इस लायक तन्दुरुस्त हो गया हो तो जो-जो उसे सूझे, वह भी विस्तारसे लिख डाले; और, किसी भी हालत में, तुम जो प्रश्न मुझसे पूछना चाहो उन्हें भी लिख रखना।
कार्यक्रम नहीं बदला तो तार करनेका विचार नहीं है।
मोहनदासके आशीर्वाद
फीनिक्स
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३४८) से।
- ↑ डर्बन।