अन्तर्गत उनके उत्तराधिकारियोंको अपने नाम पंजीयन करानेसे रोक दिया गया है।[१] भारतीयोंके स्वामित्वके सम्बन्धमें कानून इस तरह अमलमें लाया जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि ट्रान्सवालके वतनी, जैसा कि सर्वथा उचित है, जहाँ चाहें, कहीं भी जमीन-जायदादका स्वामित्व प्राप्त करनेको स्वतंत्र हैं। केपके रंगदार लोग भी ट्रान्सवालमें अचल सम्पत्ति रखनेको स्वतंत्र हैं। पाबन्दी केवल एशियाइयोंपर लगाई गई है।
युद्धके पहले भारतीय ट्रान्सवालकी किसी भी रेल सेवाके उपयोगसे वंचित नहीं थे। अब रेल-मार्ग निकाय (रेलवे बोर्ड) ने स्टेशन मास्टरोंको सूचनाएँ भेजी हैं कि वे प्रिटोरिया और जोहानिसबर्गके बीच चलनेवाली एक्सप्रेस गाड़ीके लिए भारतीयों तथा रंगदार लोगोंको टिकट न दें।[२] इस प्रकार भारतीय व्यापारियोंके लिए भारी असुविधा खड़ी कर दी गई है। बहुत अधिक सम्भव है कि अन्ततः राहत मिलेगी ही, किन्तु यह सूचना बताती है कि सरकारका झुकाव किस ओर है।
प्रिटोरियाके समान ही जोहानिसबर्ग में ब्रिटिश भारतीय तथा रंगदार लोग नगरपालिकाकी ट्रामगाड़ियोंका उपयोग करनेमें असमर्थ हैं।[३]
नेटालमें स्थिति संक्षेपमें इस प्रकार है : विक्रेता परवाना अधिनियम सबसे अधिक शरारतकी जड़ है। मुद्दतसे जमे हुए श्री दादा उस्मान नामक एक ब्रिटिश भारतीय व्यापारीकी युद्धके पहले फ्राइहीडमें, जब वह ट्रान्सवालका एक भाग था, एक दूकान थी, [और] वे वहां बिना किसी रुकावटके व्यापार करते थे। जब फ्राइहीड नेटालमें मिलाया गया तब वहाँ के एशियाई-विरोधी कानूनोंकी विरासत भी नेटालने पाई। इस प्रकार फ्राइहीडमें १८८५ का कानून ३ तथा नेटाल विक्रेता-परवाना अधिनियम दोनों ही लागू हैं। इनके अन्तर्गत कार्रवाई करके श्री दादा उस्मानका परवाना छीन लिया गया है और उनका फाइहीडका व्यापार बिलकुल ठप हो गया है।[४] इस प्रकारकी भीषण कठोरताका एक मामला लेडीस्मिथ जिलेमें भी हुआ। वहाँ कासिम मुहम्मद नामक एक व्यक्ति एक खेती (फार्म) में कुछ समयसे व्यापार कर रहा है। गत वर्ष उसके नौकरने रविवासरीय व्यापार कानूनका उल्लंघन किया था। उसने पड़ोसके एक दूकानदार द्वारा भेजे गये जाली ग्राहकोंको एक साबुनकी टिकिया और चीनी बेची थी। यह साबित हो गया था कि दूकानदार खुद गैरहाजिर था। इस अपराधके कारण इस वर्षका उसका परवाना नया नहीं किया गया।[५] अपील निकायने परवाना अधिकारीके निर्णयको बहाल रखा। निकायका कहना था कि उसने एक गोरेके मामलेमें जिन सिद्धान्तोंका अवलम्बन किया था उन्हींके अनुसार परवाना-अधिकारीने फैसला दिया है। किन्तु यह सत्य नहीं है। उक्त गोरेके बारेमें यह पाया गया था कि उसने अपने उपकिरायेदारोंको शराबका व्यापार करनेकी अनुमति दी थी और यह शराब वतनियोंको बेची जाती थी। उसपर यह इल्जाम भी लगाया गया था कि उसने अपने अहाते में अफीम बेची थी। गोरे व्यक्तिने जानबूझकर उपर्युक्त कानूनका जो उल्लंघन किया था उसके मुकाबले रविवासरीय व्यापार कानूनका प्राविधिक उल्लंघन वास्तवमें कानून-भंग ही नहीं था।
तीसरा मामला श्री हुंडामलका है। उन्हें डर्बनमें एक स्थानका परवाना दूसरे स्थानके लिए बदलने से इनकार कर दिया गया था।[६] विक्रेता परवाना अधिनियमके अन्तर्गत बीसियों मामलों में