२९९. लेडीस्मिथ परवाना निकाय
हम उस मामलेके बारेमें लिख ही चुके हैं जिसमें हमें ऐसा लगा कि एक निर्दोष भारतीय व्यापारीके साथ घोर अन्याय किया गया है।[१] अपील अदालतने अपने फैसलेके समर्थनमें जिस मैकिलिकनके मामलेका उल्लेख किया था, उसकी बहुत कुछ जानकारी अब हमें प्राप्त हो गई है। हमारे सामने उस मुकदमेके मूल कागजातकी सही नकल मौजूद है। हमें उससे पता लगता है कि मैकिलिकनके परवानेको नया करनेसे इनकार करनेके कारण बहुत मजबूत थे और वे इस प्रकार हैं :
२. क्योंकि उसी जगह प्रार्थीको ७ नवम्बर १९०३ को अफीम बेचनेके अपराधमें १५ जनवरी, १९०४ को सजा दी गई थी। यह व्यापार कुछ समयसे चल रहा था जिससे इलैंड्सलागटेकी खानके भारतीयोंकी मानसिक शक्तिका भयानक ह्रास हुआ था और उन्हें दूसरे नुकसान भी पहुँचे थे। इसके अलावा खान मैनेजरको तबतक लगातार चिन्ता बनी रही जबतक उसको अपने नौकरोंके साथकी गई बुराईका स्रोत न मिल गया।
इस प्रकार परवानेका उक्त प्रार्थी अवैध ढंगसे बेची जानेवाली शराबसे वतनियोंको प्रत्यक्ष रूपसे विष देनेका और भारतीय खनिकोंको कानूनके विरुद्ध अफीम बेचकर बदहवास बनानेका दोषी था। इनमें से हर मामलेमें दोष स्वयं उक्त प्रार्थीका था। इस मामलेसे भारतीय मामलेकी तुलना करना और भारतीयको परवानेसे वंचित करनेके लिए इसको नजीरके रूपमें पेश करना शब्द-व्यभिचार मात्र है। निकायके लिए यह ज्यादा सम्मान और ईमानदारीकी बात होती कि वह असली कारण — रंगभेदको — अपनी अस्वीकृतिका आधार बनाता।
भारतीय आवेदकने अपने प्रार्थनापत्रके पक्षमें जो प्रमाणपत्र पेश किये थे, उनमें से कुछ हमारे पास भी भेजे गये हैं। डर्बनके एक प्रमुख व्यापारीने परवाना अधिकारीको लिखा है : हम उनको एक अत्यन्त सम्माननीय, विश्वस्त और सरल भारतीय और जिलेमें परवाना देने योग्य व्यक्ति समझते हैं।" इसलिए जहाँ मैकिलिकन अपने चरित्रके कारण निश्चित रूपसे व्यापारी परवानेके अयोग्य था, वहाँ भारतीयका चरित्र निर्दोष है। लेडीस्मिथके उस गरीब भारतीयपर जो कुछ बीती है वह कदाचित् नेटालमें भारतीयोंके लिए कोई असाधारण अनुभव नहीं है। इसलिए हमें विश्वास है कि नेटाल भारतीय कांग्रेस, जो भारतीय समाजकी हित रक्षाके निमित्त सदैव सजग रहती है, इस मामलेको सरकारके ध्यानमें लाने और न्याय प्राप्त करानेसे न चूकेगी।
इंडियन ओपिनियन, २१-४-१९०६
- ↑ देखिए "एक मुश्किल मामला", १४ २८७-८।