३०९. भाषण : कांग्रेसकी सभा में
नेटाल भारतीय कांग्रेसकी एक सभा कांग्रेस भवनमें यह विचार करनेके लिए की गई कि जूलू लोगोंने बम्बाटाके नेतृत्वमें जो विद्रोह किया है उसके सम्बन्धमें एक आहत सहायक दलकी सेवाएँ देनेका प्रस्ताव सरकारके सम्मुख रखना उचित है या नहीं। कांग्रेस अध्यक्ष श्री दाऊद मुहम्मद सभापति थे। गांधीजीका यह भाषण सभाकी रिपोर्टसे लिया गया है। इस सभामें अन्य लोगोंने भी भाषण दिये थे।
डर्बन
अप्रैल २४, १९०६
श्री गांधीने बोअर युद्धमें भारतीयोंके योगदानका उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह सभा भारतीयोंके स्वयंसेवक भर्ती होनेके आम सवालके सम्बन्धमें नहीं की गई है। उनका खयाल है। कि भारतीय समाजके रूपमें जो रक्षात्मक शक्ति उपलब्ध है उसका उपयोग न करके सरकार उपनिवेशके प्रति अपने स्पष्ट कर्तव्यकी उपेक्षा कर रही है। श्री वॉटने कहा है कि वे भारतीयोंसे अपना बचाव कराना नहीं चाहते। उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि भारतीयों का उपयोग खाइयाँ खोदनेके लिए करेंगे। इस सम्बन्धमें स्वर्गीय श्री एस्कम्बने हमें आश्वासन दिया था कि खाइयाँ खोदना और घायलोंकी शुश्रूषा करना वैसे ही सम्मानप्रद और आवश्यक कार्य हैं जैसा बन्दूक उठाना। किन्तु आज हमें श्री वॉटके विचारोंके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहना है। हमें तो यही विचार करना है कि हमको वर्तमान संकटमें सरकारके सम्मुख अपनी सहायता देनेका प्रस्ताव रखना है या नहीं, भले ही वह सहायता कितनी ही तुच्छ क्यों न हो। यह सच है कि हमारे ऊपर निर्योग्यताएँ लगी हुई हैं और हम परेशान हैं। वतनी लोगोंके विद्रोहके सम्बन्ध में भी दो रायें हो सकती हैं। किन्तु हमारा कर्तव्य है कि हम ऐसे किसी खयालसे प्रभावित न हों। यदि हम नागरिकताके अधिकारोंका दावा करते हैं तो हम उन अधिकारोंके साथ जुड़ी हुई जिम्मेदारियोंमें हिस्सा लेनेके लिए बाध्य हैं। इसलिए उपनिवेशके सामने मौजूद खतरेको दूर करनेमें मदद देना हमारा कर्त्तव्य है। भारतीयोंने बोअर युद्धमें अच्छा काम किया था। जनरल बुलरने उसकी सराहना की थी। वक्ताने सलाह दी कि भारतीयोंको इस बार भी सरकारके सम्मुख वैसा ही प्रस्ताव रखना चाहिए।
एडवोकेट श्री गैब्रियलने तब निम्न प्रस्ताव पेश किया :
श्री लाजरस गैब्रियलने पूछा कि जो लोग प्रस्तावके पक्षमें मत देंगे क्या वे अपनी सेवाएँ देनेके लिए बाध्य हैं।
श्री गांधीने कहा कि प्रस्तावका अर्थ यह नहीं है। किन्तु उसके पक्ष में मत देनेवाला प्रत्येक सदस्य उस कदमको सफल बनाने में सहायता देनेके लिए बँधा है। दलको बनाना वर्तमान सदस्योंका काम है, बशर्ते कि सरकार इस प्रस्तावको स्वीकार करनेकी कृपा करे।
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६