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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३३८

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३१३. नेटाल दूकान-कानून

नेटाल दूकान-कर्मचारी संघके मन्त्रियोंने जो लम्बा लेख दूकान-कानूनपर लिखा है उसको हमारे सहयोगी 'नेटाल ऐडवर्टाइज़र' ने बहुत महत्त्व दिया है। इसमें मन्त्रियोंने यह दिखानेका यत्न करते हुए कि इससे एशियाई व्यापारको क्षति पहुँची है, इस कानूनका औचित्य सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है। इससे उस व्यापारको क्षति पहुँची है या नहीं, इसपर हम विवाद नहीं करना चाहते। हमने कानूनके आधारभूत सिद्धान्तको स्वीकार कर लिया है। हमारे खयालसे यह ठीक ही है कि दूकानोंके खुलने तथा बन्द होनेके समयपर सरकारका नियन्त्रण हो। किन्तु हम यह खयाल किये बिना नहीं रह सकते कि विधान द्वारा वस्तुतः जो घंट निश्चित किये गये हैं, वे सब तरहसे असुविधाजनक हैं। उनको निश्चित करनेमें उस जनताका, जो इन व्यापारियोंको आश्रय देती है, कुछ खयाल नहीं किया गया है। शनिवारको दोपहरके बाद दूकान बन्द करा देना नितान्त मूर्खता है। खैर, यह सब तो हमने यों ही कह दिया। हम समझते हैं कि कानूनको व्यवहार योग्य बनानेके लिए उसमें शीघ्र ही संशोधन करना पड़ेगा।

लेकिन संघके जिम्मेदार अधिकारियोंने जिस गैर-जिम्मेदाराना ढंगसे भारतीय व्यापारियोंके सम्बन्धमें चर्चा की है उसपर, हमें लगता है, कुछ विचार प्रकट करना जरूरी है। मन्त्रियोंने कहा है कि इस कानूनके पहले भारतीय व्यापारी अपनी दूकानें प्रति सप्ताह १०३ घंटे खुली रखते थे जब कि कानून बनने के बादसे वे सिर्फ ५३ घंटे प्रति सप्ताह ही खुली रखते हैं। इस प्रकारके निराधार वक्तव्यके समर्थन में कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। यह वक्तव्य स्वतः ही गलत है। १०३ घंटे प्रति सप्ताहका मतलब है १७ घंटे १० मिनिट प्रति दिन। अगर अब हम यह मान लें कि भारतीय दूकानदार (खाने-पीने और कपड़े पहनने आदिकी जरूरत न होनेपर भी) ६ बजे सुबह अपनी दूकान खोलता है; तो प्रतिदिन १७ घंटेसे ज्यादा दूकान खुली रखनेके लिए उसको रातके ११.१० बजेके बाद ही दूकान बन्द करनी पड़ेगी। हमें ऐसे भारतीय व्यापारियोंके नामोंकी सूची पाकर प्रसन्नता होगी जो कानून बननेके पूर्व ६ बजे सुबहसे ११.१० बजे रात तक अपनी दूकानें खुली रखते थे। हमने ब्रिटिश लोकसभाके आयरिश सदस्योंके बारेमें जरूर सुना है कि वे सारी रात सदनमें अथक रूपसे बैठे रहते थे और 'कोला'की[] गुठलीके एक टुकड़ेसे भूख मिटा लेते थे। किन्तु हमने यह नहीं सुना कि कोई भारतीय व्यापारी अपने कर्मचारियोंके साथ, विस्तरेसे उठते ही (अगर उन्हें बिस्तर रखनेका श्रेय दिया जा सके) ६ बजे सुबह अपनी दूकानकी ओर दौड़ पड़ता हो और ११.१० बजे रात तक थड़ेपर खड़ा रहता हो। हमने भारतीयोंके बारेमें बहुत-से अत्युक्तिपूर्ण विवरण पढ़े हैं; परन्तु नेटाल दूकान कर्मचारी संघका यह विवरण अवश्य ही बढ़ गया है। फिर भी हम यह माननेको तैयार हैं कि कुछ भारतीय दूकानदार आजकलकी अपेक्षा ज्यादा समय तक दूकान खुली रखते थे। परन्तु अगर प्रमाणकी आवश्यकता हो तो हम यह भी सिद्ध करनेके लिए तैयार हैं कि उस श्रेणीके यूरोपीय व्यापारी उनसे ज्यादा नहीं तो उनके बराबर ही उसी ढंगका गुनाह किया करते थे।

करीब-करीब उपर्युक्त अत्युक्तिके समान ही मन्त्रियोंके अन्य वक्तव्य भी हैं। हम उनसे निवेदन करते हैं कि वे उनको छपानेके लिए दौड़नेसे पहले उनके तथ्योंका अध्ययन कर लिया करें।

 
  1. एक आफ्रिकी पेड़ जिसकी गुठली नशा उतारनेके लिए खाई जाती है।