हम उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि भारतीय व्यापारी आखिर इतना अधम तो नहीं है जितना वेउसे चित्रित करते हैं।
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
३१४. इस पत्रकी आर्थिक स्थिति
हमारे पाठकोंको यह जानकर सन्तोष होता होगा कि यह अखबार ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते हैं त्यों-त्यों बढ़ता जाता है। शुरू-शुरू में हम गुजरातीके चार ही पृष्ठ देते थे। उसके बाद पाँच पृष्ठ देने लगे। तमिल और हिन्दी विभागोंको बन्द करनेके बाद आठ पृष्ठ देने शुरू किये। और इस हफ्ते हम बारह पृष्ठ दे रहे हैं। यह बात आसानीसे समझी जा सकेगी कि पत्रको इस तरह बढ़ाते जानेसे खर्च भी बढ़ता है। परन्तु हम प्रोत्साहनके बिना बहुत आगे नहीं बढ़ सकते। श्री उमर हाजी आमद झवेरीके घर जो बैठक हुई उससे इस पत्रकी स्थितिका कुछ अन्दाज हो सकेगा।[१] हमारा खयाल है कि इसकी मदद करना हरएक भारतीयका फर्ज है। पत्रके प्रकाशनसे सम्बन्धित सभी लोगोंकी स्थिति ऐसी है कि वे अपना निर्वाह दूसरे साधनोंसे कर सकते हैं। फिर भी, हम मानते हैं कि वे पत्रके साथ इसीलिए बँधे हुए हैं कि वे अपने हृदयों में स्वदेशाभिमानकी चिनगारी जगाये रखते हैं। लेकिन अगर समाजकी ओरसे पर्याप्त सहारा मिले तो पत्र और भी अधिक काम कर सकेगा। हम अपने ग्राहकोंसे यही निवेदन करना चाहते हैं कि अगर हरएक ग्राहक एक-एक ग्राहक बढ़ा दे, तो ग्राहक-सूची दुगुनी होते देर न लगेगी। अपने पाठकोंको हम यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि आमदनीमें जो भी वृद्धि होगी, उसका सारा लाभ पत्रको सुधारनेमें खर्च किया जायेगा।
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
३१५. दक्षिण आफ्रिकाके नौजवान भारतीयोंसे विनय
आजकल दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय नौजवानोंकी मण्डलियाँ बन रही हैं। इसे हम अपनी सुधरती हुई हालतका लक्षण मान सकते हैं। एक ओर डर्बनमें मुस्लिम युवक संघ (यंगमेन्स मोहम्मडन सोसाइटी) बना है, दूसरी ओर जोहानिसबर्ग आदि स्थानोंमें सनातन धर्म-सभाकी स्थापना हुई है। यह एक सन्तोषजनक बात है। लेकिन हमें दोनों सभाओंको चेतावनी देनेकी जरूरत मालूम होती है।
यह सदाका एक नैसर्गिक नियम है कि जो सभा स्थापित होती है, उसके लोगोंके मन निर्मल हों और सब सभाकी भलाईमें अपनी भलाई मानें; तभी सभा पनप और टिक सकती है।
किसी भी देशका आधार उसके नौजवानोंपर होता है। पके हुए विचारोंके बुजुर्ग अपने विचारोंमें फेरफार नहीं करते। वे पुराने विचारोंपर डटे रहते हैं। हर कौमको ऐसे लोगोंकी
- ↑ देखिए "इंडियन ओपिनियनके बारेमें", पृष्ठ २९९-३००।