जरूरत होती है। क्योंकि ऐसे लोग नौजवानोंके खौलते खूनको ठंडा कर सकते हैं। लेकिन अगर उनसे यह लाभ होता है, तो कभी-कभी उनके कारण हानि भी होती है, अर्थात्, जरूरत पड़नेपर वे कुछ कामोंको करनेमें आनाकानी कर जाते हैं। उन्हें वही करना ठीक मालूम होता है। लेकिन ऐसे समय अच्छे नौजवान मददगार साबित होते हैं, और आगे आते हैं। प्रयोग तो उन्हींसे हो सकते हैं। अतएव, जहाँ एक ओर नौजवानोंके मण्डलोंको बढ़ावा देना जरूरी है, वहाँ उन्हें चेतावनी देना भी जरूरी है।
अगर इन नौजवान मण्डलोंके सदस्य सच्चे दिलसे, देशका भला करनेके इरादेसे ही काम करेंगे, तो वे बहुत बड़े-बड़े काम कर सकेंगे। हममें गन्दगी ज्यादा है। श्री पोरन मोहम्मदने कांग्रेसकी बैठकमें इसका विवेचन भी किया है। इस गन्दगीको दूर करनेमें नौजवान घर-घर जाकर, लोगोंको नम्रतापूर्वक समझाकर बहुत मदद कर सकते हैं। कुछ गरीब भारतीय शराब पीते हैं। उनकी स्त्रियोंको भी इसकी लत पड़ जाती है। अगर हमारे नौजवान उनको इससे मुक्त करनेका बहुत जरूरी काम अपने ऊपर ले लें, तो वे बहुत कुछ कर सकते हैं। इसी सिलसिले में हमें यह भी कहना चाहिए कि हमारे जो पाठक गुजराती हैं, उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि उनसे मद्रासी समाजके पीनेवालोंके बीच काम नहीं हो सकेगा। हमें तो यह भी कहना चाहिए कि कुछ गुजराती हिन्दुओंको भी शराबकी लत लग रही है। उन्हें समझाने में हिन्दू और मुसलमान सब मदद कर सकते हैं।
साथ ही, ऐसे युवक मण्डलोंको शिक्षाकी ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। हमारे नौजवानोंमें भी शिक्षा बहुत कम है। हम अक्षरज्ञानको शिक्षा नहीं मानते। हमें दुनियाके इतिहासका, भिन्न-भिन्न संविधानोंका और इसी तरहका दूसरा ज्ञान होना चाहिए। इतिहासके उपयोगसे हम यह जान सकते हैं कि दूसरी जातियोंकी उन्नति क्यों हुई। हम दूसरी जातियोंकी स्वदेशाभिमानकी उमंगका अनुकरण कर सकते हैं। युवकोंके मण्डल ऐसे अनेक काम कर सकते हैं। हम मानते हैं कि ऐसा करना उनका कर्त्तव्य है, और हमें आशा है कि ये मण्डल अच्छे काम करके अपने कर्त्तव्यका पालन करेंगे, लोगोंको उपकृत करेंगे और हमपर आनेवाले संकटोंमें पूरा-पूरा हाथ बँटायेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
३१६. मोम्बासाकी सभा
भारतके कष्टका अन्त नहीं है। भारतीय जहाँ जाता है, गोरे भी वहाँ उनके साथ पहुँचते ही हैं। अगर गोरोंसे कष्ट न हो, तो हम आपसमें लड़ने लगते हैं। इससे बचें, तो महामारीमें फँस जाते हैं, और अगर कहीं इन तीनों मुसीबतोंसे बरी रहें, तो अकाल हमारे पीछे पड़ा ही है।
अपने मोम्बासावासी भाइयोंकी बैठकके जो समाचार हम इस अंकमें दे रहे हैं, उनके कारण मनमें ये विचार उठते हैं। मोम्बासाके आगे नैरोबीका जो उपजाऊ प्रदेश है, उसपर गोरोंकी दृष्टि पड़ी। इसलिए उन्होंने वहाँसे भारतीयोंको खदेड़नेका अथवा वहाँ उनके पैर न जमने देनेका प्रयत्न किया। मालूम होता है कि इसमें उन्हें सफलता मिली है। इसपर से भारतीयोंने वहाँ एक बड़ी सभा की है, और ऐसे इरादेके विरुद्ध कदम उठानेके लिए तैयार हो गये हैं। वहाँ लोगों में इतना अधिक जोश था कि उन्होंने आधे घंटेमें २०,००० रुपये इकट्ठे कर लिए और वकीलपर खर्च करने के लिए हर महीने ४०० रुपयेकी गारंटी दी।