अनुकरण करेगी और उपनिवेशकी विधान-संहिताको उस कानूनसे मुक्त कर देगी जिसकी निन्दा सभी विचारशील लोगोंने की है और जिससे महामहिम सम्राटकी प्रजाके एक वर्गमें बहुत तीव्र खीज उत्पन्न हुई है।
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
३२५. ब्रिटेन, तुर्की और मिस्र
हालके तारोंसे पता चलता है कि ब्रिटिश सरकार और तुर्क सरकारके बीच फिरसे कड़वाहट बढ़ गई है। मिस्रकी सीमाका निश्चय नहीं हो पाया है, इसीलिए यह सारी झंझट है। पहला झगड़ा अकाबाके पास शुरू हुआ। फिर सिनाई ताल्लुकेमें टाबा यामा'पर कब्जा करनेके लिए तुर्क फौज गई। इसपर ब्रिटिश राजदूत सर निकोलस ओ कोनरको ब्रिटिश सरकारने लिख भेजा कि वह तुर्क सरकारसे टाबासे फौज हटा लेनेकी सख्त माँग करें। किन्तु तुर्क सरकारने इस माँगपर कोई ध्यान नहीं दिया, और मुकाबलेपर डटे रहने में जर्मन सम्राट्ने उसे प्रोत्साहित किया। अब तुर्क सिपाही अकाबामें किला बना रहे हैं और ऐसा लग रहा है, मानो लड़ाईकी तैयारी कर रहे हों। इसपर ब्रिटिश सरकारने मिस्रमें अपनी सेना बढ़ाना शुरू कर दिया है। ब्रिटिश सरकारको इस बातका भी डर लग रहा है कि मिस्रके लोग भी तुर्क सरकारके पक्षमें हैं। अगर ब्रिटिश और तुर्क सरकारके बीचकी इस तनातनीसे लड़ाईका मौका आया, तो यह इस तरहका पहला ही मौका होगा। ऐसा नहीं लगता कि तुर्क सरकार भी पीछे हटेगी। 'विटनेस' के नाम आये तारसे ऐसा मालूम होता है कि राफाके पास जो सीमा- सूचक खम्भे खड़े थे, उन्हें तुर्क फौजने उखाड़ फेंका है।
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
३२६. हमारा कर्त्तव्य
'एजेक्स' नामसे किसी व्यक्तिने 'ऐडवर्टाइजर' को एक पत्र लिखा है। उसका अनुवाद हमने इस अंक में दूसरी जगह दिया है। वह सभी भारतीयोंके लिए विचारणीय है। 'एजेक्स' का पत्र हमारे विरुद्ध उत्तेजना फैलानेवाला है। उसने सब कुछ मजाक उड़ाते हुए लिखा है, जिसका तात्पर्य यह है कि लड़ाईके समय भारतीय किसी कामके नहीं।
हमें इस आरोपपर पूरी तरह विचार करना चाहिए। हमने नेटालकी सरकारको सूचना भेजकर ठीक ही किया है। उससे हम अपना सिर कुछ तो ऊँचा रख ही सकते हैं। लेकिन इतना काफी नहीं है। हमें लगता है कि हम लोगोंको और भी ज्यादा मेहनत करके लड़ाईके वक्त उसमें हाथ बँटा सकनेकी हालतमें आ जाना चाहिए। नागरिक सेनाके कानूनकी रूसे
१, दमिश्क और मक्का के बीच तुर्की रेल्वेकी सुरक्षा के लिए तुर्क सेनाने टावापर कब्जा कर रखा था। बादमें राफा और अकावाके बीच एक नई सीमापर समझौता हो गया।