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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३४७

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मोम्बासाका उदाहरण

गोरोंको लाजिमी तौरपर लड़ाईमें जाना पड़ता है। हम भी अपनी ताकत और तैयारी दिखा सकेँ, तो आसानीसे हमारे दुःख कटनेकी संभावना है। दुःख करें चाहे न करें, लेकिन नेटालपर या दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे किसी हिस्सेपर संकट आनेकी हालत में दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको उसमें हाथ बँटानेके लिए तैयार होना ही चाहिए। अगर ऐसा न हुआ, तो इसमें कोई शक नहीं कि यह हमारा दोष माना जायेगा।

सुना जाता है कि स्वाजीलैंडमें बलवा शुरू हो गया है। नेटालकी सरकारने बड़े पैमानेपर गोला-बारूद मँगवाया है। इस सबसे जाहिर होता है कि नेटालका विद्रोह अभी लम्बे समय तक चलेगा।[] और अगर वह ज्यादा फैला, तो समूचे दक्षिण आफ्रिकापर उसका असर पड़ेगा। इस बार नेटालको ट्रान्सवालकी मदद पहुँच चुकी है। केपने मदद देने को कहा है और विलायतसे भी वचन आ गया है। यदि हम ऐसे समय अलग रहे, तो इसमें शक नहीं कि उसका बहुत ही बुरा असर होगा। हम मानते हैं कि इस विषयमें हरएक भारतीयको बहुत गम्भीरताके साथ सोचना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
 

३२७. मोम्बासाका उदाहरण

मोम्बासासे वहाँके समाचारपत्रके दो और अंक आये हैं। उनसे पता चलता है कि मोम्बासाके भारतीय अपने अधिकारोंके लिए भरपूर कोशिश करना चाहते हैं। उन्होंने जो काम शुरू किया है, वह हम सबके लिए अनुकरणीय है। हम मोम्बासाके भारतीयोंकी सफलता चाहते हैं।

पिछले अंकोंसे पता चलता है कि वहाँकी सभामें[] दक्षिण आफ्रिकाके बारेमें जो गलतफहमी हुई-सी लगती थी, जान पड़ता है उसमें कसूर अखबारवालोंका था। वहाँके भारतीय यह जानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें हमें गोरोंकी बराबरीके अधिकार नहीं हैं। लेकिन अधिक महत्त्वकी बात तो उक्त समाचारपत्रमें उसके सम्पादकने जो लिखी है, वह मालूम होती है। सम्पादक लिखते हैं कि भारतीयोंमें एकता नहीं है, और जबतक एकता नहीं होगी, वे अधिकार पाने योग्य बन नहीं सकेंगे। उनमें फूट-फाट बहुत है। अगर कमिश्नरको गोरोंके बारेमें कुछ जानना हो, तो वह फौरन जान सकता कि कौन-सा गोरा सब गोरोंकी ओरसे बोल सकता है। लेकिन जब कमिश्नरको भारतीयोंके बारेमें कुछ जानना हो, तब उसे अलग-अलग जातियोंके पाँच-सात लोगोंको बुलाना पड़ता है। अगर ऐसा है, तो कहना होगा कि यह दुःखद है। हम सब एक ही देशके हैं। हम अलग-अलग जातियोंके हैं, यह चीज हमें भूल जानी चाहिए। जबतक एक देशकी बात हमारे ध्यानमें नहीं रहेगी, तबतक हमपर आनेवाले संकट दूर नहीं होंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
 
  1. देखिए "नेटालका विद्रोह", पृष्ठ २९१-२।
  2. देखिए "मोम्बासाकी सभा", पृष्ठ ३०६-७।