३२८. मजदूरोंका रहन-सहन
जो लोग समझदार हैं, उनमें आजकल खुली हवाकी कीमत बढ़ रही है। जहाँ बड़े शहर बसे हैं वहाँ मजदूरोंको सारा दिन कारखानेमें बन्द रहकर काम करना पड़ता है। शहरोंमें जमीनकी कीमत ज्यादा होनेसे कारखानोंकी इमारतें छोटी होती हैं और मजदूरोंके रहने के घर भी तंग होते हैं । इस कारण मजदूरोंकी शारीरिक हालत निरंतर बिगड़ती जाती है। लन्दन- में हीन्सबरोके डॉक्टर न्यूमनने दिखा दिया है कि जहाँ एक कोठरीमें ज्यादा लोग रहते हैं वहाँ एक हजारपर ३८ आदमी मरते हैं, उतने ही लोग दो कोठरियोंमें रहें, तो २२ आदमी मरते हैं, अगर उतने ही लोगोंके लिए तीन कोठरियाँ हों, तो ११ आदमी मरते हैं और चार कोठरियाँ हों, तो सिर्फ पाँच आदमी मरते हैं। इसमें अचरजकी कोई बात नहीं। आदमी अनाजके बिना कुछ दिन बिता सकता है, पानीके बिना एक दिन बिता सकता है, पर हवाके बिना एक मिनट बिताना असम्भव है। जिस चीजका इतना अधिक उपयोग है, अगर वह चीज शुद्ध न हो, तो उसका बुरा परिणाम निकले बिना रह नहीं सकता। इस विचारके कारण कैडबरी ब्रदर्स, लीवर ब्रदर्स वगैरह बड़े कारखानेदारोंने, जो हमेशा अपने मजदूरोंकी बहुत चिन्ता रखते हैं, अपने कारखाने शहरोंसे हटाकर खुली जगहों में बसाये हैं। मजदूरोंके रहनेके लिए भी बहुत अच्छे घर बनाये हैं, और वहाँ बाग-बगीचे, पुस्तकालय वगैरह सब सुविधाएँ हैं। इतना सारा खर्च करनेपर भी उन्हें अपने व्यापारमें लाभ रहा है। इससे प्रेरणा लेकर अब इंग्लैंडमें चारों तरफ ऐसी हलचल बढ़ रही है।
यह बात भारतीय नेताओंके लिए विचारणीय है। हम साफ हवाकी कीमत नहीं समझते, इस कारण बहुत नुकसान उठाते हैं। हमारे बीच प्लेग जैसी बीमारियाँ फैल सकनेका भी यह एक प्रबल कारण है।
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
३२९. भारतीय व्यापार-संघ
पिछले अंक में हम इस विषयपर श्री उमर हाजी आमद झवेरीका पत्र प्रकाशित कर चुके हैं। वह पत्र विचार करने योग्य है। अंग्रेजी व्यापार-संघ (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) का कितना प्रभाव है, इसे दक्षिण आफ्रिकाकी स्थितिको जाननेवाला हर भारतीय समझ सकता है। अगर भारतीयोंने शुरू से अंग्रेजोंके संघोंमें हाथ बँटाया होता, तो आज भारतीय व्यापारियोंकी हालत कुछ और ही होती। उससे बहुत सुधार हो जाते। हम जानते हैं कि जब भारतीय व्यापारी पहली बार दक्षिण आफ्रिकामें दाखिल हुए तब अंग्रेज उन्हें अपने संघमें भरती होनेके लिए निमन्त्रित करते थे। अब हालत यह है कि हम प्रवेश करना चाहें, तो वे नामंजूर कर देंगे।
श्री उमर झवेरीने अब यह विचार प्रकट किया है कि अगर हम अंग्रेजोंके संघमें प्रवेश न पा सकें, तो भी हम अपना निजी व्यापार-संघ बना सकते हैं। अगर ऐसा संघ स्थापित करके व्यापारी उसमें लगनसे काम करें और आवश्यक सुधार कर लें तथा इस तरहका संघ