३३१. पत्र : छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
मई ५, १९०६
तुम्हारी चिट्ठी मिली। तुम्हें इस हफ्ते जोहानिसबर्गकी चिट्ठी नहीं मिली — आश्चर्य है। मैंने निस्सन्देह भेजी थी। जो लेख मैंने भेजे थे उन सबकी मेरे पास सूची है। 'इंडियन ओपिनियन' मिलते ही मैं उसे मिलाकर देखूंगा और तुम्हें सूचित करूँगा। अगर गुजराती और अंग्रेजीकी प्रति मेरे पास पेशगी शुक्रवारको भेजी जा सके तो बहुत अच्छा हो। क्योंकि तब वे मुझे इतवारको सुबह मिल जायेंगी और उनका उपयोग कर सकूंगा। तुमने बहुत-सी कतरनें भेजी हैं। गुजरातीमें उनका उपयोग कर रहा हूँ। किन्तु सचमुच तो उनमें से कुछका उपयोग इसी हफ्ते में हो जाना चाहिए था। अगर हो गया हो तो मुझे उनके बारेमें कुछ नहीं लिखना चाहिये। अगर पेशगी प्रति मिले तो यह लिखना रविवारको किया जा सकता है। प्रतियाँ भेजते हुए तुम वहाँ भी उनपर निशान लगा सकते हो कि तुमने हालके अंकमें उनका उपयोग किया है अथवा नहीं। आशा करता हूँ कल गोकुलदास रवाना हो चुका होगा। फिर मैं उसे सोमवारके कामके लिए तैयार कर सकूंगा; किन्तु कोई तार न होनेसे मुझे डर है कि वह रवाना नहीं हुआ। मुझे यह बताओ कि क्या श्री आइज़कने, जो काम तुमने उन्हें सौंपे थे, किये हैं। अगले हफ्ते श्री नाजरकी चीजोंकी सूचीकी याद दिलाना। मैं तुम्हारी चिट्ठी फाड़ रहा हूँ इसलिए मुमकिन है मैं इसके बारेमें बिलकुल भूल जाऊँ। दूसरे कामोंकी हद तक तुम्हें सर्वसाधारण देखरेख करनी चाहिए और अपना बाकी समय हिसाब-किताब ठीक करनेमें लगाना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि तुम अपने आपसे किसी निश्चित तिथि तक हिसाब तैयार कर लेनेका वादा कर दो।
कल्याणदासको तुम्हारे लिए शक्तिकी मीनार हो सकना चाहिए। अगर वह तुम्हारे साथ रहने को तैयार है तो रहे; मगर मैं चाहता हूँ यदि वह हेमचन्दके साथ रहे तो उसका असर हेमचन्दपर ज्यादा ठीक पड़ेगा। दोपहरको वह प्रायः फीनिक्समें भोजन नहीं करेगा। इसलिए बहुत हुआ तो वह व्यारी [वहाँ] करेगा। सो वह अलग भी कर सकता है; मगर तुम चाहो तो मिलकर दूसरी बात भी निश्चित कर सकते हो। मैं प्रसन्न हुआ कि तुम अपनी जमीनको सुथरी बनानेकी ओर ध्यान दे रहे हो। यह बहुत जरूरी काम है और मैं चाहता हूँ कि अब चूंकि तुम्हें अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता रहेगी, तुम व्यवस्थित रूपसे अपना समय इसमें लगाओ। तुम्हारे इन दो एकड़ोंमें जरा भी घासपात नहीं होना चाहिए। बगीचेके बारेमें सामको लिखूँगा[१]। बागवानीके बारेमें जो कतरन तुमने भेजी है, उसे वापस कर रहा हूँ। मेरा खयाल है श्री वेस्ट के पास एक छोटीसी किताब[२] है। ऐसे मामलोंमें तुम्हें अगुआई करनेकी बान डालनी
- ↑ यह उपलब्ध नहीं है।
- ↑ श्री वेस्टका कहना है कि उल्लिखित पुस्तक दू कासकी लिखी हुई थी। दू कासको नेटालका व्यावहारिक अनुभव था। उनका, डर्बनसे कुछ ही दूर, हिलैरीमें एक सुन्दर बगीचा था। फीनिक्स में लगाये गये कई फल-फूलोंके पौधे वहसे मँगाये गये थे। पुस्तकका नाम मुझे याद नहीं आता; परन्तु प्रकाशक शायद पीटरमै रिल्सवर्गके पी° डेविस ऐंड सन्स थे।