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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३५८

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३३७. भारतको स्वराज्य

भारतीय स्वराज्य संघ (इंडियन होम रूल सोसाइटी) के उपसभापति श्री पारेखने इंग्लैंडके न्यूकैसिल नगर में इस आशयका भाषण किया है कि भारतको स्वराज्य दिया जाना चाहिए। उसमें वे कहते हैं कि भारतको पूर्ण स्वतन्त्रता दी जाये और गोरे भारत छोड़ दें। आजकलकी राजनीति न राज्यकर्ताओंके लिए लाभप्रद है और न जनताके लिए। ऐसी प्रणालीसे नौकरीके लिए जानेवालोंके नीति-विचारमें कभी-कभी बहुत बिगाड़ होता है। कहा यह जाता है कि भारतका प्रबन्ध संसदकी सत्ताके अधीन है। लेकिन असल में वह सत्ता बहुत ही कम है; अथवा यों कहिए कि नाममात्रको है। भारतके लाखों लोगोंकी शिकायतें सुननेका समय संसद के पास बिलकुल नहीं होता, इसलिए अधिकारी वर्ग अपनी मर्जी के मुताबिक सत्ताका उपयोग करता है। अगर स्वराज्य दिया जाये, तो निश्चित रूपसे भारतके लोगोंकी हालत सुधरेगी। भारतमें बार-बार अकाल पड़ते हैं। इसका कारण अनाजका अभाव नहीं है; अनाजका अभाव हो, तो वह देशके किसी एक भागमें होगा। सारे देश में अकाल पड़नेका कारण कुछ और ही है। अनाज तो है, पर लोगों के पास उसे खरीदने के लिए पैसा नहीं है। भारत भुखमरी से पीड़ित है, इसका कारण पैसोंका अकाल है, अनाजका नहीं। वहाँकी सरकार अपनी रैयतके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन नहीं करती; और अंग्रेजी राज्य लोगोंके कल्याणके लिए है, यह कहना 'एक ढोंग और दिखावा है। अतः न्याय और मानवताके कल्याणके लिए भारतको स्वराज्य दिया जाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६
 

३३८. चीनी वापस जा सकेंगे

चीनियोंको उनके देश वापस जाने देनेके बारेमें सरकार जो विज्ञप्ति चिपकाना चाहती थी, उसके सम्बन्धमें ट्रान्सवालके खान-मालिकोंकी ओरसे जोरदार आवाज उठाई गई थी। ८ तारीखके दिन बॉक्सबर्ग में आम सभा की गई थी। उसमें यह बताया गया था कि चीनियोंको स्वदेश लौटनेके लिए सरकारको पैसे नहीं देने चाहिए। मार्केट स्क्वेयरकी सभा, रैंड अग्रगामी दलकी सभा तथा क्रुगर्सडॉर्पके व्यापार मण्डल (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) ने भी इसी आशयके प्रस्ताव पास किए थे।

एक खानवालेने सरकारी अधिकारीको अपने क्षेत्रमें इस प्रकारकी विज्ञप्ति लगानेसे रोका था, और ट्रान्सवालके उच्च न्यायालयमें परीक्षात्मक मुकदमा दायर किया था। उसका फैसला देते हुए मुख्य न्यायाधीशने कहा है कि सरकारको इस तरहकी विज्ञप्ति लगवानेका पूरा हक है। अर्जदारकी अर्जी खर्चके साथ खारिज कर दी गई है। इस मतलवके परिपत्र जारी किए गये हैं। कि खान- मालिकोंको चीनियोंके हर मुहल्ले में विज्ञप्ति लगवाने में सरकारी अधिकारियोंकी मदद करनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६