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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३७९

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वक्तव्य : संविधान समितिको


६. अगर मैंने अपना सब कुछ लोकोपयोगके लिए समर्पित न कर दिया होता तो मैं आपकी धनेच्छा पूरी कर सकता था।

मैंने तो यह कभी नहीं कहा कि मैंने भाइयों या दूसरे रिश्तेदारोंके लिए बहुत कुछ किया है। मैं जो कुछ बचा सका वह सब मैंने उनको दे दिया। और यह बात घमण्डसे नहीं कही और सिर्फ मित्रोंसे कही है।

भरोसा रखिये, अगर आप मेरे पहले गुजर गये तो मैं कुटुम्बके भरण-पोषणका भार खुशी-खुशी उठा लूंगा। इस बारेमें आपको डरनेकी जरूरत नहीं है।

इस समय मेरी हालत आपकी इच्छाके अनुसार आपको रुपये भेजने लायक नहीं है। हरिलालकी शादी हो, तो ठीक है; न हो तो भी ठीक है। कमसे-कम फिलहाल तो मैंने पुत्रके तौरपर उसके बारेमें सोचना छोड़ दिया है।

अगर जरा भी संभव हो तो मैं मणिके विवाहके लिए भारत आनेको तैयार हूँ। परन्तु अपनी वर्तमान हालतकी कोई कल्पना आपको नहीं दे सकता। समयकी इतनी तंगी है कि समझ में नहीं आता, क्या करूँ। कृपाकर विवाहकी तिथि तारसे सूचित कीजिए, जिससे मैं निकलनेके लिए तैयार रहूँ।

शायद आपको यह बता देना उचित होगा कि मैं रेवाशंकर भाईका ऋणी हूँ।

आप मुझे भले ही छोड़ दें, फिर भी मैं तो वहीं रहूँगा जो हमेशा रहा हूँ।

मुझे याद नहीं आता कि जब मैं वहाँ था तब मैंने आपसे जुदा होनेकी इच्छा जाहिर की थी। मगर की भी हो तो अब मेरा मन बिलकुल साफ है — मेरी आकांक्षाएँ अब ज्यादा ऊँची हैं और मुझे किसी किस्मके दुनियाई सुख-भोगकी इच्छा बिलकुल नहीं है।

मैं अपनी वर्तमान प्रवृत्तियोंको जिन्दगीके लिए जरूरी समझता हूँ, इसीलिए उनमें लगा हूँ। अगर ऐसा करते-करते मुझे मौतका सामना करना पड़े तो मैं शान्त चित्तसे करूँगा। भय अब मुझे है ही नहीं।

मुझे शुद्ध हृदयके लोग प्रिय हैं। जगमोहनदासके लड़के छोटे कल्याणदासकी आत्मा प्रह्लादके जैसी है। इसलिए वह मुझे ऐसे पुत्रसे ज्यादा प्यारा है, जो सिर्फ इसलिए पुत्र है कि वह पुत्र रूपमें जन्मा है।

[अंग्रेजीसे]

मो° क° गांधी : "सिलेक्टेड लेटर्स : (१), नवजीवन, १९४९" से।

 

३६४. वक्तव्य[] : संविधान समितिको

[जोहानिसबर्ग
मई २९, १९०६]

गोरोंका प्रभुत्व

(१) ब्रिटिश भारतीय संघने गोरोंके प्रभुत्वके सिद्धान्तको सदा स्वीकार किया है और इसलिए वह जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है, उसकी ओरसे किन्हीं राजनीतिक अधिकारोंकी प्राप्ति के लिए जोर देनेकी उसकी इच्छा नहीं है। तथापि पिछला अनुभव बताता है कि

 
  1. परिशिष्ट और यह वक्तव्य संविधान समितिके समक्ष प्रस्तुत किया गया था; देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ३३२-४।