(७) जोहानिसबर्ग में उन्हें सर्वसामान्य गाड़ियोंमें बैठनेसे रोका जाता है, किन्तु रंगदार लोगोंके लिए कभी-कभी खास पिछलग्गू डिब्बे लगा दिये जाते हैं।
(८) भारतीयोंकी ओरसे दावा किया गया था कि सामान्य उपनियमों के अन्तर्गत वे ट्राम-गाड़ियों में यात्रा करनेका आग्रह रख सकते हैं। नगर परिषदने दावेका विरोध इस आधारपर किया कि भूतपूर्व डच सरकारके द्वारा १८९७ में जो कुछेक चेचक सम्बन्धी विनियम बनाये गये थे, वे अभी लागू हैं। दो बार जोहानिसबर्ग में इस मामलेकी न्यायाधीशके सामने कसौटी हुई और हर बार नगर परिषदकी हार हुई। इसलिए अब उसने ट्रामगाड़ियोंके यातायात सम्बन्धी उपनियमोंको रद करके भारतीयोंको जवाब दिया है। अपना उद्देश्य सिद्ध करनेके लिए नगर-परिषद अब बिना किन्हीं उपनियमोंके नगरपालिकाकी गाड़ियाँ चला रही है। सर्वसामान्य कानूनके अन्तर्गत भारतीय अपना अधिकार सिद्ध कर सकेंगे या नहीं यह देखनेकी बात है।
ध्यान देने योग्य बात है कि उपनियमोंका उक्त रद किया जाना निम्न प्रकार चालाकीसे विज्ञापित किया गया था।
तारीख ९ को नगर परिषदकी एक बैठक हुई। स्पष्ट ही इत्तला ऐसे ढंगसे विज्ञापितकी गई थी कि सम्बन्धित लोगोंका प्रस्तावित संशोधनोंको चुनौती देना लगभग असम्भव हो गया था — मुख्यतः दो कारणोंसे। पहला, समाचारपत्रोंके सामान्य स्तम्भों में उनका कोई विवरण प्रकाशित नहीं हुआ था; और दूसरा, प्रस्ताव ट्रामवे या बिजली समिति की बजाय, जो साधारणतया ट्रामवे-नियमोंसे सम्बन्धित रहती हैं और भूतकालमें रही हैं, कार्य समिति (वर्क्स कमिटी) के मारफत आया था। कार्य समितिने परिषदकी उक्त बैठकमें निम्न बहानेसे संशोधन प्रस्तुत किया :
प्रस्ताव एक लंबी-चौड़ी कार्यसूचीके अंतमें उस समय प्रस्तुत किये गये जब जागृतसे जागृत सदस्य, भी विशेषतः उनकी निरापद-सी भूमिका के कारण, इस भुलावेमें डाला जा सकता था। प्रस्ताव बिना किसी टीकाके पास हो गये। तारीख १८ के 'गवर्नमेंट गजट' में सूचना प्रकाशित हुई कि रद करनेवाली प्रस्तावित उपधाराको स्वीकार करके कानूनकी ताकत दे दी गई है। इस प्रकार सारी बात करीब-करीब भारतीयोंके पीठ पीछे नौ दिनोंकी अवधि में, तमाम व्यावहारिक प्रयोजनोंके लिए, बिना चेतावनी दिये निश्चित हो चुकी थी।
(९) अब जोहानिसबर्ग में मलायी बस्तीके नामसे प्रसिद्ध बस्तीको जिसमें भारतीय निवासियोंकी बड़ी संख्या है, बेदखल करके भारतीयोंको जोहानिसबर्गसे तेरह मील दूर भेजनेका प्रयत्न किया जा रहा है।
अनुमतिपत्र अध्यादेश
पहले भारतीय ट्रान्सवालमें आनेके लिए स्वतंत्र थे; अब शांति-रक्षा अध्यादेशको, जो एक शुद्ध राजनीतिक कानून है, भारतीयोंके प्रवेशको रोकनेके लिए प्रयुक्त करके उसे अपने सही